सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३५४ भारतवर्षका इतिहास 1 धम्मों के प्रचारसे हिन्दू धर्मके इस खरूपमें अन्तर नहीं आया। यद्यपि लगभग एक सहस्र चर्पतक इन धम्मों के बीच प्रति. योगिता और मुठभेड़ रही, परन्तु अन्ततः हिन्दू धर्मने महात्मा बुद्धको विष्णुका अवतार कहकर बौद्ध धर्मको भी आत्मसात कर लिया। हिन्द-इतिहासमें बीसों ऐसे दृष्टान्त मिलते हैं जहां इन भिन्न भिन्न धर्मों के अनुयायियोंमें विवाह-सम्बंध हुए। मुसलमानोंके आनेके पहले धार्मिक विभिन्नताके कारण न खान- पानमें और न विवाहादिमें ही कोई संकोच किया जाता था। हिन्द, चौद्ध और जैन सब आपसमें प्रत्येक प्रकारका व्यवहार करते थे। जाति-पांतिके कारण विवाहका सम्बन्ध परिमित था परन्तु धार्मिक विभिन्नताके कारण ऐसान था। हिन्दू, बौद्ध और जैन एक दूसरेकी लड़कियां लेते भी थे और देते भी थे। एक घरानेके भिन्न भिन्न व्यक्ति भिन्न भिन्न धार्मिक विश्वास रखते थे, वरन् विदेशी जातियों के साथ भी हिन्दू विवाह-सम्बन्ध करते थे। महाराजा चन्द्रगुप्तने सिल्यूकसकी लड़कीसे विवाह किया। हम यह नहीं कह सकते कि हिन्दुओंके राजनीतिक- - कालमें भारतमें धार्मिक भेदोंके कारण कभी अत्याचार नहीं हुए । परन्तु जब हम यूरोपका इतिहास पढ़ते हैं तब हमें यह प्रतीत होता है कि यूरोपकी धार्मिक मारकाट, रक्तपात और अत्याचारोंको दृष्टिमें रखते हुए यदि हम यह कह दें कि हिन्दुओं, यौद्धों और जैनोंने अपने उत्कर्षके कालमें धार्मिक मत-भेदोंके कारण कभी एक दूसरेपर अत्याचार नहीं किया तो हमारा यह कथन झूठ न होगा। यूरोपमें कोई शताब्दी ऐसी नहीं बीती जय लाखों मनुष्योंको धार्मिक मत-भेदोंके कारण तलवारके घाट नहीं उतारा गया। इस विषयमें यूरोपका इतिहास एक रकमय इतिहास है और उसकी टक्करका एक भी दृश्य हिन्द-इतिहासमें