पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३९७

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना हमने संक्षेपसे प्राचीन हिन्दू आर्य सभ्यता उपसंहार। और अर्वाचीन सभ्यताकी यह तुलना की है जिससे लोगोंको अपनी प्राचीन सभ्यताकी त्रुटियों और सदु. गुणोंका ज्ञान हो जाय । हिन्दू आयौंकी वर्तमान सभ्यताका रूप बहुत भद्दा हो गया है क्योकि उन्होंने प्राचीन नियमों और पुरानी प्रथाओंका परित्याग करके मध्यकाल और माधुनिक कालमें बहुतसीगन्ध अपनी सभ्यतामें मिला दिया है। जहा हम यह यात जानते हैं कि भारतको इसकी प्राचीन सभ्यतापर ले जाना असम्भव है वहां हमारा यह भी दृढ विश्वास है कि भारत- को यूरोप और अमरीकाकी प्रतिलिपि बना देता भी हमारे लिये घातक सिद्ध होगा। हमारा यह प्रयत्न होना चाहिये कि हम अपने आपको यूरोपके शासनसे प्रत्येक अङ्गमें सातन्च कर लें। यूरोप इस समय हमपर राजनीतिक अर्थों में ही शासन नहीं कर रहा है वरन् यह आर्थिक, चौद्धिक और संस्कृति सम्बन्धी मनोंमें भी हमारा शासक बना हुआ है। जिम समय इस शासनका दवाव हमारे सिरोंपरसे टल जायगा तय ही हमें स्वतन्त्रता- पूर्वक यह सोचनेका अवसर मिलेगा कि हमें यूरोपसे क्या क्या सीपना और उसकी सभ्यताके कोन कोनसे गगोंको अपने जीवन में धारण कर लेना चाहिये। उस समय हमारा कर्तव्य होगा कि हम अपने समाजके विभागोंका प्राचीन तथा अर्वाचीन सभ्यताके प्रकाशमें अध्ययन करें और आवश्यकतानुसार व्यक्ति- गत और राष्ट्रीय जीवनमें इसके अनुसार परिवर्तन करते चले जायें। दासताकी अवस्थामें और अपने मस्तिष्क और प्रति. में दासताके संस्कार रखते हुए जो परिवर्तन हम अर्वाचीन मनुष्य बननेकी अभिलापासे करेंगे उसमें सदा यह शड्डा बनी -रहेगी कि सिद्धान्तके स्थानमें नकल अधिक भाग ले लेगी।