पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३९८

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भारतवर्षका इतिहास उत्तम माधारोंपर और शुद्ध नियमोंपर हम अपने देशका भविष्य केवल उसी अवस्था में बना सकते हैं जब हमारा भाग्य स्वयं हमारे हाथ में हो। उसपर न किसी बाह्य शक्तिका और न किसी बाह्य सभ्यताका दवाव हो। इस संसारमें रहते हुए हम अपनी महान् जातिको और इस विस्तृत महादेशको विचारों या अनु. ठानोंकी किसी सङ्कीर्ण कोठरीमें बन्द करना नहीं चाहते। हम संसारसे अलग होकर यदि दाई ईटकी इमारत धनाना भी चाहें तो भी नहीं बना सकते । हमें इस बातका अनुभव होता है कि हमने अपनी सभ्यतामें इस अलग होनेके भावका अनुचित रूपसे पालन-पोपण करके हानि पहुंचाई है। हमें इस यातकी आव. श्यकताका अनुभव होता है कि हम अपनी जातिके प्रत्येक स्त्री- पुरुष और बच्चेके मनमें यह भाव बैठा दें कि संसारसे भाग जाना चीरता और पुरुषत्वका चिह्न नहीं है, वरन् संसारमें रह- कर संसारके समस्त पदार्थोंको धर्मानुसार उचित रूपसे भोगते हुए पुण्यमय जीवन व्यतीत करना, स्वाधीन रहना, और दूसरे मनुष्यों को स्वतन्त्र रहने में सहायता देना ही सच्चो वीरता और पुरुषत्व है। हम अपनी जातिको प्रजापोड़क बनाना नहीं चाहते । हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि हमारी जाति दूसरोंको नष्ट करके, या दूसरोंको अपने अधीन करके, या दूसरोंकी स्वत- न्त्रतामें हस्तक्षेप करके धनाढ्य या समृद्धिशालीग्नें। हम केवब यह चाहते हैं कि न हम दास हों और न और कोई दास हो । जिस प्रकार हमें अपनी आवश्यकतामोंको पूरा करनेमें और धर्म तथा सदाचारके नियमोंपर अपने व्यक्तिगत और राष्ट्रीय जीवनको ढालने में पूर्ण स्वतन्त्रता हो उसी प्रकार संसारके अन्य देशों और अन्य जातियों को भी स्वतन्त्रता प्राप्त हो। हम संसार- में भाई-बन्दी और मित्रता फैलाना चाहते हैं। हम केवल बरा-