हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना चरीका अधिकार मांगते हैं। न शासित रहना चाहते हैं और न दूसरोंको शासित बनाना चाहते हैं। हमारी अभिलाषा यही है कि धर्म और सदाचारमें यदि हम संसारको दूसरी जातियों- से अधिक उन्नति कर सकें तो संसार हमारा सम्मान इसलिये करे कि हम उसके मित्र और शुभचिन्तक है, न कि इस कारण कि हम अपनो उच्चताके अभिमान और गर्वमें दूसरोंको नीचा दिखाकर अपनी बड़ाईसे लाभ उठायें। यह इतिहास इस उद्देश्यसे तैयार किया गया है कि हिन्दुओं- को यह मालूम हो जाय कि हमारी प्राचीन सभ्यता न तो ऐसी पूर्ण थी कि उसमें अव उन्नतिके लिये कोई स्थान ही नहीं, और न यह ऐसी अपूर्ण और निकम्मी थी जो हमारे लिये लजास्पद हो और हमको उसके कारणसे लजित और अपमानित होना पड़े। हमारी निस्सहायता और दरिद्रताकी वर्तमान अवस्था हमारी दुर्वलताओंका परिणाम है, परन्तु वह हमारी सभ्यताका कोई अवश्यम्भावी फल नहीं।
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३९९
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