पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४००

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दूसरा परिशिष्ट हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति । प्राचीन भारतमें राजनीतिक संगठन और व्यवस्था । आजकल यह फैशन हो गया है कि कुछ हिन्दू विद्वान् राज. नीतिक विज्ञान अर्थात् पालिटिक्सको तिरस्कारकी दृष्टिसे देखते है और संघ राजनीतिक काम करनेवाले एजोटेटर (आन्दोलन फारी) समझे जाते हैं। अगरेजीका यह शब्द आजकल पुरे अर्थोमें प्रयुक्त होता है, अर्थात साधारणतया यह उन लोगोंके लिये उप- योगमें लाया जाता है जो जनताके हृदयोंमें अशान्ति और संक्षोम उत्पन्न करें। परन्तु यह यात स्पष्ट है कि जबतक मनुष्योंकी प्रकृति में अपनी वर्तमान अवस्थाके विरुद्ध अशान्ति उत्पन्न न हो तबतक उन्नति असम्भव है । जो मनुष्य अपने मनमें यह समझे हुप है कि मैं सर्वाङ्गपूर्ण है, मुझमें कोई त्रुटि नहीं, वह कभी उन्नति नहीं कर सकता । उन्नति करनेके लिये यह आवश्यक है किं मनुष्योंकी प्रकृतियों में संक्षोम और मानसिक अशान्ति उत्पन्न हो। इसलिये प्रत्येक सुधारकका यह पहला काम है कि वह लोगोंके मनमें सुधार और उन्नतिकी चाह उत्पन्न करे। अतएव एजोटेटर होना वास्तव में एक सुधारकका लक्षण है । परन्तु सय सरकारें उन लोगोंको बदनाम करनेका उद्योग करती हैं जो पर्तमान राजव्यवस्थाफे दोप घतलाकर उसमें परिवर्तन करनेका