पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४०

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i) श्रीयुत हेवल भारतमें बहुत-वर्पतक रहे। यहां उन्होंने बड़े परिश्रमसे भारतीय कला और भारतीय सभ्यताका अध्ययन किया। भारतीय घास्तुविद्या, चित्रकारी और तक्षणविद्या भादि कलाओंपर उनकी पुस्तके सर्वोत्तम गिनी जाती हैं। अब उन्होंने हिन्दू-इतिहासपर भी एक क्रमिक पुस्तक लिखकर इति. हास-प्रेमियोंपर भारी उपकार किया है। उनकी पुस्तक अधि- कतर हिन्दूसभ्यताके भिन्न भिन्न अङ्गोंका वर्णन करती है। इस गाष्टिसे वह विसेण्ट स्मिथकी पुस्तकस भी अधिक मूल्यवान है। हिन्दू-इतिहासका कोई भी विद्यार्थी इन दोनों पुस्तकोंको तुच्छ समझकर छोड़ नहीं सकता । इन दोनों पुस्तकोके परिणामोंको परखनेके लिये जो उद्धरण और प्रमाण इनमें दिये गये हैं वे इतने पर्याप्त हैं कि उनकी जांच और पड़तालसे प्रत्येक व्यक्ति अपने लिये यथार्थ परिणाम निकाल सकता है। हिन्दुओंके लिये लजाका स्थान है कि उनके इतिहासपर • प्रामाणिक पुस्तकें अंगरेजोंने लिखी हैं, और उन्होंने स्वयम् इस मोर अभी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। यह सची यात उनके जातीय और धार्मिक कर्तव्यानुरागको प्रकट नहीं करती। बहुतसे:हिन्दू यह कहते सुनाई देते हैं कि प्राचीन हिन्दू इतिहास लिपनेकी परवाह नहीं करते थे। परन्तु यह उनकी भूल इतिहाससे अभिप्राय फेवल राजनीतिक इतिहाससे नहीं है इतिहाससे अभिप्राय फेवल राजाओंके इतिहाससे नहीं है। इति. हाससे अभिप्राय केवल युद्धोंके इतिहाससे नहीं है। घरन् इति- हासका महत काम यह है कि वह हमको यह पता सके कि हमारी वर्तमान अवस्था, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सामा- जिफ, नैतिक और मानसिक दृष्टिस, विस प्रकार बनी। इति. दासका यह काम है कि हमको यता सके फि पर्तमान अवस्था- ह