केम्ब्रिज हिस्टरी आव इण्डियाका प्रथम खण्ड . गया है न कि राष्ट्रीयतापर; उनका सम्बन्ध विचारोंसे है न कि । कर्मसे, कल्पनाओंसे है न कि सत्य घटनाओंसे। सच तो यह है कि धर्म और तत्वज्ञानके इतिहासमें, कानून और सामाजिक संस्थाओंकी उन्नतिकी विद्याके लिये, और ऐसी विद्याओंके E विकासकी कहानी में जैसा कि व्याकरण है और जिनका निर्भर घटनाओंके अतीव सूक्ष्म तथा सावधान अवलोकनपर है, ये भाण्डार प्राचीन संसारके भाण्डारोंमें अपनी पूर्णता तथा क्रममें अद्वितीय हैं। परन्तु राजनीतिक प्रगतिके इतिहासके लिये वे अपर्याप्त हैं। यह विचार सर्वथा सत्य है कि प्राचीन आर्य-साहित्यमें, चाहे वह ब्राह्मणोंका हो, योद्धोंका हो या जैनोंका, अधिकतर पल सिद्धान्तोंके वर्णनपर, तत्त्वज्ञानके स्पष्टीकरणपर और धर्मके व्याख्यानपर दिया गया है। राजनीतिक इतिहासको प्राचीन भारतीय यह महत्व न देते थे जो आजकलके यूरोपीय देते हैं। उनकी दृष्टि में राजाओंके नाम , उनका कार्य-कलाप या लड़ाई-झगडे इस योग्य न थे कि विद्वान् लोग अपना अमूल्य समय और मस्तिष्क उनका वर्णन करनेमें नष्ट करते। उनकी वटिम इतिहासका सर्वोत्तम उद्देश्य यह था कि लोगोंको भिन्न भिन्न कालोंके विचारों, रीतियों, नीतियों, और नियमोंका ज्ञान हो, न कि अकेले राजाओंके वृत्तान्तोंसे पोथेभर दिये जायें। फिर भी हमारे प्राचीन साहित्यमें इतिहास की उपेक्षा नहीं की गई। र्भाग्यसे भारतका बहुतसा साहित्य नष्ट हो गया। जो ऐति. सिक साहित्य शेष है उसमें बहुत कुछ प्रक्षेप किया गया है। भारतीय सभ्यताकी पृष्ठ ६१ पर आगे लिपी सम्मति भार. तीय सभ्यताकी विशेषताको मली भांति विशेषता। प्रकट करती है। शिलालेखों आदिसे जो
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४६२
दिखावट