फेस्त्रिज हिस्टरी आव इण्डियाका प्रथम खण्ड ४२१ गिराना, उनके शस्यको जला देना मादि बातें कमी उनके मन तको न आती थीं।
- आर्य के स्थानमें एक
तीसरे परिच्छेदमें अध्यापक रपसनने "इण्डो यूरोपियन" या "इण्डो जर्मे निक" नया शब्द। या "आर्म्य" शब्दके स्थानमें एक नवीन शब्दका उपयोग किया है। परतफ यह प्रथा चली आती है कि
- (एडो यूरोपियन” या “इण्डो जर्मे निक" भापामों के पोलने-
वालोंको आर्या, या 'इण्डो यूरोपियन' या 'इण्डो जर्मे निक' कहा जाता है परन्तु अव उक्त अध्यापक 'वीरोस' कहनेका परामर्श देते हैं। इस शब्दका अर्थ बहुत सी भाषाओंमें केवल “मनुष्य" है। अध्यापक महाशयकी सम्मतिमें प्राचीन मार्यो का निवास हंगरी, आस्टरिया और योहिमिया था। वे यहाँसे चलकर मीसोपोटेमिया, ईरान, और भारतमें थाये । अध्यापक महाशय यह भी लिपाते है कि “इस स्थानान्तरकरणके लिये ईसाके २५०० वर्ष पूर्वसे पहलेका काल निरूपित करनेकी आवश्यकता नहीं।" इस सारे परिच्छेदका आधार ऐसी फ्ल्पनायें और विवाद हैं जिनकी नींवमें कोई योग्य घटनायें नहीं है। इसको “इतिहास" कहना सर्वथा अन्याय है। चौथो परिच्छेदमें यही यध्यापक ऋग्वेदकी प्राचीनता। महाशय मृग्वेदका काल निरूपित करते हैं । इस सारे परिच्छेदका आधार भी अतीव निस्सार करपनाएँ है। वेदोंके विषयको समझने, उनके भिन्न भिन्न भागोंका समय निरूपित करने और उनसे परिणाम निकालने में भारतके प्राचीन या अर्वाचीन पण्डितों या विद्वानोंके मतका कहीं प्रमाण नहीं
- Wiros
+वो पृष्ठ ७.