पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४६५

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४२२ भारतवर्षका हातहास है। केवल यूरोपीय लेखकोंके प्रमाण दिये हैं। यूरोपीय तथा अमरीकन अध्यापक प्रायः इसी नियमपर चलते हैं। अपने विचारमें वैदिक विपयोंको भारतीय पण्डितोंकी अपेक्षा, अधिक अच्छी तरहसे समझते हैं। वे सब भारतीय विद्वानोंकी सम्मतिको (चाहे वे प्राचीन हों या अर्वाचीन) मिथ्या समझकर उनकी सर्वथा उपेक्षा करते और अपनी मन-मानी कल्पनाओं के आधारपर भारतीय इतिहास लिखने बैठते हैं। इस सारे परि- च्छेदमें पण्डित बाल गंगाधर तिलकके लेखोंका संकेततक नहीं। हां, पृष्ठ १४६ की पाद-टीकामें जो उन पुस्तकोंकी सूची दी गई है जिन्होंने ज्योतिष-विद्याकी साक्षीपर वेदोंका काल निरूपित किया है उसमें तिलककी पुस्तकका भी नाम है। न कहीं साय- णाचार्यका प्रमाण है और न किसी दूसरे भारतीय विद्वानका । अपने परिणामोंके समर्थनमें जिस प्रकारकी युक्तियां उपस्थित की गई हैं उनके दो एक नमूने हम आगे लिखते हैं :- नमूनेके रूपमें कति- पृष्ठ ७८ पर लिखा है कि ऋग्वेद- पय युक्तियां। संहिताका वह भाग जिसको "दान-स्तुति कहा है निस्सन्देह पीछेका है और "ऐतिह्य” की दृष्टिसे उसको इस संहितामें उचितरूपसे सम्मि लित नहीं किया गया। इस कथनके समर्थनमें कोई प्रमाण नहीं दिया गया। पृष्ठ ७E पर लिखा है कि ऋग्वेदका अधिकांश उस समयकी रचना है जब कि आर्य लोग सरस्वतीके इर्द गिर्द अम्बालाके दक्षिणमें यसते थे। “मृग्वेदके मन्त्रोंमें अधिकतर वर्णन प्रकृतिके तत्त्वोंके लड़ाई-झगड़ोंका है। मेघगर्जन और विजलीके दृश्योंपर गीत बनाये गये हैं और वादलोंसे वर्षाके फूटनेका दृश्य दिखाया गया है। अध्यापक महाशय लिखते हैं कि “ठेठ पञ्जायमें ये