पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४७०

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केम्ब्रिज हिस्टरी पाव इण्डियाका प्रथम खण्ड ४२७ पंचम परिच्छेदमें दूसरे वेदों, ब्राह्मणों यजु, साम और अथर्व वैदकी और ब्राह्मण, इसमें अधिकतर कल्पनाओंसे काम और उपनिपदों आदिका वर्णन है। आरण्यक तथा उपनि- लिया गया है। सूत्रोंके समयको ब्राह्म- पदोंकी सभ्यता णोंके समयके साथ खिचड़ी कर दिया गया है। उदाहरणार्थ पृष्ठ १२६ पर माना गया है कि ब्राह्मणों- में भादोंको घृणाकी दृष्टिसे नहीं देखा गया परन भाथ्यों भोर शूद्रोंकी सामान्य रक्षा तथा भलाई के लिये प्रार्थना की गई है और धनाढय शूद्रोंका उल्लेख मिलता है । परन्तु सूत्रोंमें शूद्रोंको वेद पढ़नेका निषेध है और उनके हाथसे खाना निपिद्ध है ।* तैत्तिरीय संहिता जो राजाके रत बताये गये हैं उनकी सूची / यह है :-पुरोहित, राजन्य, महिपी (अर्थात् पदली गनी ) सूत '(अर्थात् रथवान ), सेनानी अर्थात् सेनापति, ग्रामणी शर्थात् गांवका नम्बरदार, क्षत अर्थात् राजसदनका अध्यक्ष, संगृहीत अर्थात् पजानची, अक्षावाप अर्यात् जूमा सेलनेके यन्त्रोंका अध्यक्षा शतपथ ब्राह्मणमें व्याध और दूतको भी इस सूचीमै स्थान दिया गया है और मेत्रायिणी संहितामें तरपान और रथके बनाने चालेको भी उसी सूचीमें स्थान दिया गया है (पृ० १३०-३३१) । पञ्चविंश ब्राह्मणमें आगे लिने व्यकियोंको आठ चीरोंक नामसे पुकारा गया है भाई, येटा, पुरोहित, महारानी,सूत, ग्रामणी, क्षत, संग्रहीत । विश्यका भौयन नामक एक राजाने अपने पुरोहितोंको 'भूमिका दान दिया। इसपर धरती माताने उसको बहुत लजित •फिया।

  • को प्रमाप नही दिया गया।