1 प्रावीन भारतीय इतिहास-विषयक पुस्तकोंकी सूची ४७१ ‘थावुल, खाल्डिया, असीरिया, ईरान और चीन आदिको जातियोंसेव्यापारिक और अन्य प्रकारका सम्बन्ध था। पश्चिमी 'एशियाके शिलालेखोंमें वैदिक देवताओंके नाम मिले हैं। लोकमान्य तिलकने अपने अन्तिम लेखमें अथर्ववेदपर खाल्डियन प्रभाव दिखलाया था। इन दोनोंके ऐतिहासिक अवशेष भी प्राचीन भारतके इतिहासपर प्रकाश डालते हैं। इस क्षेत्रमें बहुत सी आधुनिक खोज हो चुकी है। इसका उल्लेख हमने ऊपर दी हुई पुस्तक-सूची में नहीं किया। पाठकोंको सुलभ रूपमें यह "हाल' महाशयकी 'Ancient History of the Near East' में अथवा रालिनसनकी 'Five great monarchies' या अन्य ऐसी ही पुस्तकोंमें मिल सकेगी। स्वयं भारतवर्ष में प्राङ् मौर्य कालके बहुत कम अवशेष है। जो पत्थरके औजार मिले हैं उनसे भारम्भिक अनार्य जातियोंकी सभ्यताका कुछ पता चलता है। तांबेके कुछ औजार मिले है जिनका सम्बन्ध आप्यासे होना भी असम्भव नहीं है। हालमें ही मो० डुप्रियलने दक्षिण भारतके चैदिक स्तूपोंका वर्णन प्रकाशित किया है। कलकत्ता और मथुरा म्यूजियममें तीन बड़ी मूर्तियां हैं जो मौर्यकाल में बनी हुई यक्षोंकी मूर्तियां समझी जाती थीं। श्रीकाशीप्रसाद जायसवालने उन्हें शैशुनाग राजाओंकी मौर्य- फालसे पहलेकी मूर्तियां सिद्ध किया है। मौयों से पहलेके केवल दो समझनेके योग्य छोटे शिलालेख मिले हैं। जो सिके मिलते हैं उनपर कुछ लिखा नहीं होता, केवल कई चिह्न बने होते हैं। विदेशी साहित्य भी इस कालका बहुत है। ग्रीक और लातीनी लेखकोंकी पुस्तकोंमें भारतवर्षके, विषयमें जो कुछ है उसका संग्रह मक क्रिण्डल महाशयने किया है। मगस्थनीज- के लेखोंके जो टुकड़े मिले हैं उनका श्यानवेकने संग्रह किया है । । 3
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