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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/९५

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६. भारतवर्षका इतिहास फुल हमें शात है उससे हमें भय न हो और जो कुछ हमें ज्ञात नहीं है उससे भी हमें भय न हो। न हमें दिनमें भयहो और न रातमे । सय मोरसे हम अभय रहें। आगे दो तीन मन्त्र खतन्त्रताकी प्रशंसामें दिये जाते है :- १-आ सर्वतातिमदिति वृणीमहे । ऋग्वेद, कां० १०, सू० १००, मन्त्र मर्थ-१-हम स्वतन्त्रता और परमानन्द चाहते हैं। मादित्यासो अदित्यः स्याम पूर्देवनावसयोमर्त्यत्रा । सनेम- मित्रावरुणा सनन्तो भवेमद्यावापृथियो भवन्तः ॥१॥ ०७५२।१ अर्थ-२-हे देवताओं और मनुष्यों में शक्ति केन्द्र ! हम प्रत्येक प्रकारकी दासतासे बचे रहें। हे जीतनेवाले! हम मित्रों के मित्रको जीते और हे सर्वशक्तिमान सत्ता!हम धन, शक्ति और यशसे जीवित रहें। ३-नू मित्रो वरुणो अर्यमानस्त्मेवतोकाय परिवो दधन्तु । सुगानो विश्वा सुपयानि सन्तु यूयंपात स्वस्तिभिः सदानः ॥३॥ (०७१६३६) अर्थ-मित्र, वरुण और अर्थगन हमें अपने और अपने बच्चोंके लिये स्वतन्त्रता और स्थान दे । हमारी यात्राके लिये सब मार्ग साफ और शुभ शुभ हों । हे स्वामिन् ! हमें सदा आशी र्यादके साथ सुरक्षित रख । ४.वृदस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तर स्मादधराधायोः। इन्द्रः पुरस्तादुत मध्यतो नः सखा सखिभ्यो वरिवः कृणोतु । अथ० २०१७॥ ११ ॥ अर्थ-वृहस्पति हमको पीछेसे, ऊपरसे, नोचेसे, दुष्कर्मों से .. सुरक्षित रखने । इन्द्र हमको जगह और स्वतन्त्रता प्रदान ; --