६८ भारतवर्पका इतिहास अर्थ-तुम्हारी चाल एक हो, यात एक हो, हृदयके भाव एक हों, प्राचीन कालसे जिस प्रकार देवता लोग एक भावसे अपते अपने यज्ञके भागको लेते है उसी प्रकार तुम भी धनको यांटो। . समानोमन्त्रः समितिः समानौ समान' मनः सहचित्तमेपां। समनमन्त्रममिमंत्रयेवः समान घोहविषा जुहोमि ॥३॥ मर्ग-तुम्हारी सलाहे एफ हों, तुम्हारी सभाका एक मत हो, तुम्हारे विचार और विश्वास एषा ही हों। तुम्हारे भीतर में पताका मन्त्र फूंकता हूँ। एफ ही आहुतिसे मैं तुम्हारे लिये यश फर्क। समानोच आकतिः समाना हृदयानि यः। समानमस्तु वीमनोपयायः सुसहासति ॥४॥ अर्ण-तुम्हारे संकल्प एक हो। तुम्हारे हृदय ऐसे एक हों कि तुममें पूर्णरूपसे एकता स्थापित रहे। इस प्रकारके यदुतसे मन्त्र दिये जा सकते है, परन्तु इनसे पुस्तकका आफार मनुचित रूपसे बढ़ जायगा। ब्राह्मण-अन्य प्रायः अनुष्ठानोंके नियमोंका समुच्चय है। आर्योंका सबसे बड़ा अनुष्ठान धर्म यजन करना था। हवन यजनका आवश्यक अङ्ग था। ये यजन व्यक्तिगत, सामूहिक, मीर जातीय पवित्रता- के लिये किये जाते थे। हयनमें सुगन्धित पदार्थ जलाये जाते 'थे। यजन शन्दके अों में धर्मका प्रत्येक ऐसा कृत्य आ जाता है जिसमें त्यागका भाव फाम करता हो और जिससे दूसरेका कुछ 'दित-साधन होता हो (ये यजम कई प्रकारके हैं। इनका सचि- स्तर वर्णन "हिन्दुओंके रीति-रिवाज' शीर्षकके नीचे किया जायगा । इन प्राह्मण-ग्रंथों में इन यज्ञों की रीति और उनके रीति- ब्राह्मण ग्रंथोंका
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