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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/९८

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वैदिक धर्म रिवाजोंका वर्णन है । परन्तु उनका यह भाग जिसको आरण्यक कहते है, अर्थात जो वनमें तैयार हुमा, तत्त्वज्ञानके गहन- विवादोंसे पूर्ण है। उपनिषदोंकी उपनिषदोंकी शिक्षा बहुत ही गहन, गम्भीर शिक्षा। और सूक्ष्म है। उनके विचार बहुत ही श्रेष्ठ और उच्च कोटिके हैं। उनमें जीवन और मृत्यु के सभी प्रश्नोंकी अतीय विद्वत्तापूर्ण और दार्शनिक व्यारया की गई है। ससार- के साहित्यमें ये पुस्तकें अद्वितीय हैं। भूमण्डलके सभी धर्मों के विद्वानोंने उनकी प्रतिष्ठा की है। हिन्दुओंके चेदान्तके आधार उपनिपद हैं। उपनिषदोंके विषय ऐसे सरल और काव्य. मय नहीं है जैसे कि वेदोंके हैं। उनमें प्राय. वे कथनोपकथन और निनाद हैं जो तत्कालीन धार्मिक नेताओ, पियों और धान- प्रस्थोंके और उनके शिष्योंके वीच हुए। परन्तु उन विवादों में कटुता और मनोमालिन्यका कहीं नाम निशान नहीं । धार्मिक दृष्टिले सभी गहन और कठिन विषयोंपर प्रकाश डाला गया है और उत्पत्ति, जीवन और मृत्युके सभी रहस्योंपर विचार किया गया है। उपनिषदोंकी शिक्षा निस्सन्देह उच्च कोटिका एकीश्वरवाद है। यद्यपि इस यातपर विद्वानोंका मत भेद है कि उपनिषद द्वैतवादका प्रतिपादन करते है या अद्वैतवादका, परन्तु मेरी सम्मतिमें उनमें दोनों प्रकारकी शिक्षा मौजूद है। उपनिषदोंका उद्देश्य मत मतान्तरोंका कायम करना नहीं वरन् केवल अपने विचारोंका प्रकट करना था। 7