पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१०८

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१८ भारतवष का शतहास ४-कुछ दुष्टों ने जो इन बातों को आप न मानते थे, अपनी दुष्टता से ऐसे अनुचित बिचार बंगाल और अवध के सिपाहियों में खूब फैला दिये। उस समय सिपाहियों को एक नई तरह की बन्दूक दो गई थी उनमें जो कारतूस चढ़ाया जाता था उनको चढ़ाने से पहिले चिकना करना होता था। किसी ने सिपाहियों को बहका दिया कि यह कारतूस दोन बिगाड़ने के लिये हैं। उन्हों ने कारतूसों को काम मे लाने से इनकार किया और अपने अफ़सरों को आज्ञा न मानी। सिपाहियों ने यह भी समझा कि जैसे औरंगजेब और टीपू सुलतान ने बरजोरी हिन्दुओं को मुसलमान किया था उसी तरह अब अंगरेज़ हमको ईसाई करने लगे हैं ५---अवध और पश्चिमोत्तर देश में नवाबों के समय में तालुक. दार थे, जो दक्खिन के पालीगार या नायकों की तरह किला रखते थे। दिहात पर हुकूमत करते थे और उनसे कर लेते थे; बादशाह दबाव डालता तो उसको कुछ दे देते थे। नहीं तो एक कौड़ा तक न देते थे। अंगरेजों को हुकूमत हुई, तो उनकी प्रतिष्ठा कम हो गई। वह मन ही मन में अंगरेज़ों बैर रखने लगे। अब जो धात पाया तो उन्हों ने भो सिपाहियों को भड़काया और अंगरेजों से बागी करा दिया। ६-अब से दो बरस पहिले बूढ़ा पेशवा बाजो राव भो मर गया था। १८१८ ई० में मरहठों को लड़ाई के अन्त में उसके लिये जीते जी आठ लाख रुपये को पेनशन हो गई थी और कानपुर से छः मोल पर बिठूर का स्थान उसको रहने के लिये मिल गया था। उसके काई बेटा न था पर उसने एक लड़के को जिसका नाम नाना साहब था गोद ले लिया था। उसने नाना साहब के लिये पांच करोड़ रुपया छोड़ा। नाना साहब को इस पर भो सन्तोष