पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२०५

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भारत का शासन और प्रबन्ध शहर हैं जहां म्युनिसिपल कमेटियां हैं और उनका मेम्बर बनना लोग अपने लिये वड़ाई समझते हैं। ऐसी सात सौ कमेटियां थीं और उनमें दस हज़ार मेम्बर थे। इनमें तीन चौथाई भारतवासी थे। इन लोगों ने कमेटियों के खरचे के लिये कई करोड़ रुपया चुंगी अन्य और महसूलों से जमा किया। ६-१८८३ ई० में लाड रिपन ने जो उस समय गवर्नर जनरल थे यह निर्णय किया कि शहरों ही नहीं वरन् गांव भी अपने कामों का प्रवन्ध जहां तक हो सके आप करें, अपने मदरसों, असपताल और सड़कों का आप बन्दोबस्त करें और देखे भालें । इसके लिये लार्ड साहेब ने बहुत से गावों के बोर्ड बना दिये जिनके मेम्बर सरकारी नहीं हैं ; गांववाले उनको चुनते हैं पर भारत के किसी किसी प्रान्तों के गांववाले बहुत पढ़े लिखे नहीं होते इससे सब जगह एक ही कायदा जारी नहीं है। बहुत से गांव अपनी देख भाल के योग्य न निकले। ७-लार्ड रिपन को आशा पर सारे मद्रास में अमल हुआ क्योंकि वहां लोग अच्छी तरह पढ़े लिखे थे। यही सूवा सब से पहिले अंगरेजो राज में आया और यहीं सब से पहिले मदरसे खुले। हर जिले में एक डिस्ट्रिक बोर्ड होता है और हर तहसील में लोकल बोर्ड। गांवों का एक छोटा समुदाय एक पंचायत के प्रबन्ध में रहता है। पंजाब के सब जिलों में डिस्ट्रिकृ बोर्ड है। ८–१६६० ई० में भारत में १६७ डिस्ट्रिकृ बोर्ड और ५१७ लोकल बोर्ड थे और इनके १५ मेम्बर भारतवासी थे। बोर्डी को अपने इलाके में टैक्स लगाकर रुपया जमा करने की आज्ञा है जिसे वह आप सड़कों मदरसों और असपतालों में खरच करते हैं।