पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२९

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मोरकासिम मोरजाफ़र को भांति नाममात्र को नवाब रहना नहीं चाहता था । उसकी इच्छा यह थी कि अगले नवाबों की भांति मैं भी स्वतन्त्र होकर रहूं और जो मन में आये सो करूं। उसके यहां कुछ फरासोसी नौकर थे। दो तीन बरस उनकी सहायता से उसने अपने सिपाहियों को अच्छी तरह कवायद सिखाई और जब सेना तैयार हो गई तो उसके मन में यह विचार उठा कि जिन अंगरेजों ने उसे सिंहासन पर बैठाया था उनके पजे से निकलना चाहिये और उनको देश से निकाल देना चाहिये ; अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटा कर, जो कलकत्ते से सौ मील दूर था, मुंगेर ले गया जो तोन सौ मील दूर है। कारण यह था कि वह अंगरेजों के इतना पास रहना नहीं चाहता था। जब उसने देख लिया कि अब मुझ में लड़ने का भरपूर बल हो गया तो अंगरेज़ों पर चढ़ाई करने का बहाना ढूढ़ने लगा। ५- बहाना भी जल्द मिल गया। पलासी की लड़ाई के पीछे मीरजाफर ने यह आज्ञा दे दी थी कि कम्पनो के नौकर अपना निज का असबाब बिना महसूल जहां चाहें ले जाया करें। कुछ दिन पीछे कम्पनो के नौकरों और मुहर्रिरों ने देशो ध्यापारियों से रुपया ले कर उनको आज्ञा दे दी कि उनके नाम से अपना माल जहां चाहै विना महसूल ले जायं। मीर कासिम ने इस रोति को बन्द करना चाहा पर उसका उद्योग निष्फल हुआ। इस लिये उसने माल पर महसूल लेना ही बन्द कर दिया और सब को आज्ञा दी कि जहां चाहें बिना महसूल दिये माल ले जायं। कम्पनो के नौकरों को यह बात अच्छो न लगो। यह चाहते थे कि हम महसूल न दें, औरों से महसूल लिया जाय । ६-इस पर मोरकासिम ने लड़ाई को तैयारी कर दी। उसने शाह आलम और शुजाउद्दौला से सहायता मांगो और उनको यह