पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१५९

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भारतवर्ष की वर्तमान लिपियां बंगला लिपि-वंग (बंगाल) देश की लिपि होने के कारण इसको बंगला कहते हैं. प्राचीन बंगला लिपि प्राचीन पूर्वी नागरी से निकली है (देवो, ऊपर पृ. ४३) और उमीमें परिवर्तन होते होने वर्तमान यंगला लिपि बनी. इस लिपि में नागरी के समान अक्षर पूर्ण हैं और इमका साहित्य भारतवर्ष की सब भाषाओं के माहित्य मे बढ़ा हुआ है जिसका कारण यही है कि भारतवर्ष में सकोर अंग्रेजी का राज्य सब मे पहिले बंगाल में हुआ जिसमें विद्या का मूर्य वहां सबसे पहिले फिर उदय हुआ. यह लिपि सारे बंगाल और आसाम में प्रचलित है. पहिले मंस्कृत पुस्तक भी इसमें छपने लग गये थे परंतु अब वे यहुधा नागरी में ही छपते हैं. वंगभाषा के पुस्तक आदि ही इममें छपते हैं. मैथिल लिपि-मिथिला (निरहुन) देश के ब्राह्मणों की लिपि, जिसमें संस्कृत ग्रंश जिग्वे जाते हैं, 'मैथिल' कहलाती है यह लिपि वस्तुतः बंगला का किंचित् परिवर्तित रूप ही है और इसका धंगला के साथ वैसा ही मंबंध है जैसा कि कैशी का नागरी से है. मिथिला प्रदेश के अन्य लोग नागरी या कैथी लिग्बते हैं. लिरिपत्र वां रहता है इस लिपिपत्र में उड़िा, गुजराती और मोडी ( मराठी ) लिपियां दी गई हैं. उड़िया लिपि--उडू ( उड़िया वा उड़ीमा ) देश की प्रचलित लिपि को उक्त देश के नाम पर से उड़िया कहते हैं या लिपि पुरानी बंगला में निकली हो ऐमा प्रतीत होता है क्योंकि इमके अधिकतर अक्षर हम्राकोल के लेग्व के अक्षरों मे मिलने हुए हैं और ए, ऐ, श्री और औ नो वर्तमान बंगला ही है. इम लिपि के अनर मरमरी तौर से देखनेवालों को विलक्षण मालूम देंगे परंतु हम विलक्षणता का मुख्य कारण कुछ तो अक्षरों को चलनी कलम से लिग्वना और उनके गालाईदार लंघ मिर ही हैं जिनका दाहिनी ओर का अंश नीचे को झुका हुआ ये मिर भी बंगाल के राजा लक्ष्मण मन के तर्पडिधी और कामरूप के वैद्यदेव के दान- पत्रों में मिलनेवाले ऐसे मिरों ( देवो, लिपिपत्र ३३) के परिवर्द्धित रूप या विकास मात्र हैं इन सिरों को हटा कर दंग्वा जावे नो मूल अक्षर बहुत ही मरल हैं. इस लिपि में स्वरों की मात्राओं के चिक भी बंगला शैली के ही हैं. गुजराती लिपि-गुजरात देश में प्रचलित होने के कारण इमको गुजराती कहते हैं. सारे गुजराम, काठियावाड़ और कच्छ में इसका प्रचार है. काठियावाड़ के हालार विभाग के बहुत से लोगों की भाषा कच्छी से मिलती हुई हालारी है और कच्छवालों की कच्छी है परंतु उन लोगों की लिपि गुजरानी ही है. यह लिपि भी कैथी की नाई नागरी का किंचित् विकृत रूप ही है. अ, इ, म्व, च, ज. झ, फ और य ये आठ अक्षर न्वरा मे लिखे जाने के कारण नागरी मे अय भिन्न यन गये हैं उनमें से 'ख' तो 'प' मे घना है और 'इतथा 'झ जैन शैली की नागरी से लिये हैं. इन आठों अक्षरों का विकामक्रम नीचे बतलाय अनुमार है- ५% अपय स. ४% ३६ 4%3 ५५ २५% च वयय OP=7 I won. 353. ५% फ फ५. 4%3 बबल गुजराती लिपि के अक्षर पहिले सिर की लकीर खींच कर लिम्वे जाते थे और न्यौपारी लोग अब तक अपनी पहियों तथा पत्रों में वैसे ही लिग्वने हैं, परंतु टाइप बनानेवालों ने सरलता के लिये सिरों के चित्र मिटा दिये तब से वे विना लकीर भी लिखे जाते हैं. मोडी लिपि-इसकी उत्पत्ति के विषय में पूना की तरफ के कोई कोई ब्राह्मण ऐसा प्रासद्ध करते हैं कि हेमाडपंत अर्थात् प्रसिद्ध हेमाद्रि पंडिन ने इसको लंका से लाकर महाराष्ट्र देश में प्रथ- खित किया, परंतु इस कपन में कुछ भी सत्यता नहीं पाई जाती क्योंकि प्रसिद्ध शिवाजी के पहिले