पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१६९

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नागरी अंकों की उत्पत्ति १४१ तामिळ लिपि की उत्पत्ति. तामिळ लिपि की उत्पत्ति में बहुधा प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ के कुछ रूप वे ही हैं जो ग्रंथ लिपि की उत्पत्ति में दिये गये हैं इस लिये उनको छोड़ कर बाकी के रूपों ही का विवेचन किया भ-चौ. ६१( तिरुवेळ्ळरे का लेख ); पां. ६० (कूरम् का दानपत्र). इ-दू.६: ती. १२ (जग्गयपेट के लेम्व); चौ. ६० (कूरम् का दानपत्र; दूसरे की तीनों वक्र रेलामों को चलती कलम से मिला कर लिखने से). ई-प. ६२; द. पहिले से बना उ-ग्रंथ लिपि के समान. ए-सी. १४; चौ ६० (कशाकूडि का दानपत्र ). ऐ-दू. ३ (हाथीगुंफा का लेख ); नी. ४५ ('ग' के साथ 'ऐ' की मात्रा जोड़ने से, लिपि- पत्र ३८ के 'ऐ' की नाई). मो-ती. ६० ( उदयेंदिरम् का दानपत्र ): चौ. ६२ (तिरुमले के चटान का लेस्त्र) क-द. ६० ( कूरम् का दानपत्र); ती ६१ (वेल्लोर का लेग्व); चौ. ६० (जंबुकेश्वर का लेख) -द. पहिले से बना; नी. दुसरे से बना; चौ. ६२ (विरूपाक्ष का दानपत्र ). च-दु. ६० (कूरम् का दान पत्र);ती ६२ (विरूपाक्ष का दानपत्र). अ-ती. ३८ (सिंहादित्य के दानपत्र के 'ज्ञा' में): चौ. ६२ (विरूपाक्ष का दानपत्र ). ट-दू. ६० (उदयेंदिरम् का दानपत्र) ए- ग्रंथ लिपि के ममान. त- अथ लिपि के समान न-चौ. ६२ (विरूपाक्ष का दानपत्र). म-द. ६; ती. ५८ (देवेंद्रवर्मन् का दानपत्र ): चौ. तीसरे से यना. य-ग्रंथ लिपि समान. र--थौ. ५६ ( श्रीरंगम् का लेख ). ल-दृ. ६० (कूरम् का दानपत्र ); नी. ६१ (तिरवेळरे का लेख ). ब-ग्रंथ लिपि के समान २३-वर्तमान नागरौ अंकों की उत्पत्ति. ( लिपिपत्र -४ के उसगई का द्वितीय खंर । जैसे वर्तमान नागरी लिपि ब्राह्मी लिपि में परिवर्तन होते होते बनी है वैसे ही वर्तमान नागरी के अंक भी प्राचीन ब्राह्मी के अंकों के परिवर्तन से बने हैं १-५ ७१ ( नानाघाट का लेख ); दृ. ७१ ( गुप्तों के लेम्ब ); ती. चौ. ७२ (बौद्ध पुस्तक); पा. ७५ (प्रतिहार भोजदेव का दूसरा लेख ). २-प. ७१ (कुशनवंशियों के लेख ) दु.७१ (गुप्तों के लेख ); ती ७२ (मि. पावर के पुस्तक). ३-प. ७१ (कुशनवंशियों के लेख ): द ती ७१ ( गुप्तों के लेख ): चौ ७२ ( मि. पावर के पुस्तक; तीनों वक्र रेवानों के परस्पर मिल जाने से ). ४-प.७१ (अशोक के लेख ); द. ७१ (नानाघाट का लेख): ती. ७१ (कुरानवंशियों के बेस); चौ. ७१ (गुप्तों के लेख).