पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१७४

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प्राचीनलिपिमाला. मंडलों के पद पर बने हुए रंगीन नो तग 'मातृमास्थापन', 'ग्रहस्थापन' के सादे नक्शे मिलते हैं जिनके प्रत्येक कोष्ठ में स्थापित किये जानेवाले देवता आदि का नाम स्याही मे यथास्थान लिम्वा रहता है. राजनाने में 'भडनी' या 'गुरड' लोग कपड़े के लये लये ग्वाड़ों पर लिम्वे हुए पंचांग रखते हैं जिनमें देवताओं, अवतारों आदि के रंगीन वित्र भी होते हैं वे गांवों और खेनों में फिर कर वहां के लोगों को पंचांग सुना कर और उनके साथ के रंगीन चित्रा का हाल कह कर अपनी जीविका चलाते हैं. दक्षिण में माई मोर आदि की तरफ के व्यापारी लोग कपड़े पर इमली की गुठली की लई लगा कर पीछे उसको काला करते हैं और उमसे अपने हिमाय की 'वही' बनाते हैं जिसको ‘कडिनम्' कहते हैं और उसपर ग्वाड़िया मे लिखते हैं. ऐमे दो तीन सौ वर्ष तक के पुराने सैंकड़ों कड़िते शृंगेरी के मठ में मिले हैं। जिनमें मठ के हिमाय, शिलालेग्वों और ताम्र- पवों आदि की नक्ने, नथा गुरुपरंपरा आदि घातं लिग्बी हुई हैं पाटण (अणहिलवाड़ा) के एक जैन पुस्ताभंडार में श्रीयनपरिरचित 'धर्मविवि नामक पुस्तक, उदयसिंह की टीका महित, १३ इंच लंब और ५ इंच चौड़े कपड़े के 6 पदों पर लिव' हुमा विद्यमान है'. कपड़े के पत्रे यना कर उनपर पुस्तक लिग्वे जाने का कवल यही एक उदाहरण मिला है. लकड़ी का पाटा और पाटी भारतवर्ष में पत्थर की स्नटों के प्रचार के पहिले प्राचीन काल से ही विद्यार्श लोग पाटों पर लिग्वना मीग्वने थे. ये पाटे लकड़ी के होते थे और चारों कोनों पर चार पाये उसी लकड़ी में मे निकाले शांते थे. पाटों पर मुनतानी मिट्टी या बड़िया पान कर मुलाते थे. फिर उनपर इंटों की मुरग्वी विद्या कर नीग्वे गोन मुग्न की लकड़ी की क नम मे, जिम गजपूताने में 'यरतना' या 'परया' (वणक ) कहते हैं. निवते. अब पा) के स्थान में स्नेगे का पवार हो गया है तो भी कितने ही ग्रामीण पाठशालाओं के विद्यार्थी अब तक पाटों पर ही पहाई', 'हि गाय' आदि लिम्वत हैं पानिपी लोग अब तक बहुधा जन्मपत्र और वफल अादि का गणिन' पाटों पर काने के बाद कागजों पर उतारने हैं. बच्चों की जन्मकुंडलियां नया विवाह के ममय लग्नकुंडलियां प्रथम पाटे पर गुलान बिछा कर उमपर ही बनाई जाती है. फिर वे कागज़ पर लिखी जाकर यजमानों को दी जाती हैं. लकड़ी की बनी हुई पतली पार्टी (फलक) पर भी प्राचीन काल में विद्यार्थी लिग्वने थे यौद्धों की जातक कथाओं में विद्यार्थियों के फलक का उल्नेव मिलना है'. अब भी उमपर मुलतानी मिट्टी या वड़िया पोतने याद स्याही मे लिग्नते हैं. अब नक राजपूताना आदि के यहुन से दुका- नदार विक्री या रोकड़ का हिसार पहिले ऐमी पाटियों पर लिम्व लेते हैं, फिर अवकाश के समय उसे पहियों में दर्ज करते हैं. विद्यार्थियों को सुंदर अक्षर लिम्वना सिम्बलाने के लिये ऐमी पाटियों को पहुधा एक तरफ लाल और दूसरी ओर काली रंगवाते हैं. फिर मुंदर अक्षर लिम्वनेवाले से उन- पर हरताल से वर्णमाला, पारखडी (द्वादशाक्षरी) आदि लिग्ववा कर उनपर रोशन फिरा देते है सब से छोटा : फुट ५६ इंच लंबा और उतना ही चौड़ा, और सबसे बड़ा १५ फुट लंबा और ५ फुट ७ इंच चौड़ा है कितने ही अन्य स्थानों में भी ऐसे अनेक पट देखने में प्राय है । मासोर राज्य की प्रापिालॉजिकल सर्वे की रिपोट, ई.स १६१६, पृ १८. २. पी पीटर्सन की बंबई हाते के संस्कृत पुस्तकों की खोज की पांचवीं रिपार्ट, १९३ इस प्रकार गणित करने की चाल की ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों में धूलीकर्म' कहा है देखो. ऊपर पृ ३, और उसी पृष्ठ का टिप्पण २. 4