पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लेखनसामग्री. जिससे उनपर के हरताल के अक्षर पक्के हो जाने हैं. फिर विद्यार्थी लोग ग्वडिपा को पानी में घोल कर नड (बरू) की कलम से उनपर लिग्वने का अभ्यास करते हैं जिसको ‘पाटो घोटना फहते हैं. इस तरह कुछ समय तक उनपर लिवन मे विद्यार्थियों के अक्षर सुंदर बनने लग जाते हैं. प्राचीन पुस्तकों की नकल करनेवाले अर्थत् पुस्तकलेग्वक लकड़ी की सादी या रंगीन पाटी पर, ऊपर से करीब ४ इंच छोड़ कर, डोरी लपेटते हैं और उसमें चार पांच इंच लंबी पतली लकड़ी लगा देते हैं, जिसमे मूल प्रति का पत्रा दया रहता है. उस पाटी को घुटनों पर रख जमीन पर बैठ कर पुस्तकों की नकल करते हैं. रेशमी करदा रेशमी कपड़ा भी सनी कपड़े की नाई प्राचीन काल में लिखने के काम में लाया जाता था परंतु उमकं. यहुन महंग होने के कारण उसका उपयोग बहुत कम ही होना होगा. अयम्नी लिग्वना है कि मैंने यह भुना कि रेशम पर लिखी हुई कावुल के शाहियावंशी हिंद राजाओं की वंशावली नगरकोट के किले में विद्यमान है मैं उसे देखने को बहुत उत्तम था परंतु कई कारणों से वह न यन सका, डॉ चूलर ने जेसलमेर के वृर जानकोप नामक जैन पुस्तकभंडार मे रेशम की एक पट्टी पर म्याही में लिम्बा हुई जैन मृत्रों की सूची देखी धी चमड़ा युगप नथा अरब श्रादि एशिया के देशों में प्राचीन काल में लावतमामग्री की मुनभता न होने में वहां क लोग जानवरों के चमड़ा को माफ़ कर उनपर भी गिग्य थे परंतु मारनप में नाड़ा, भोजपत्र ग्रादि प्राकृतिक लग्वन मामग्री की प्रचुरता नस तु नभता एवं मों में चनात्र, नया वैदिक कान के पीछे के ब्राह्मणों मगचर्न के अनिरिक और चमड़ा, अपवित्र माना जाने के कारण निबने में उसका उपयोग शायद ही होता हो ना भी कुछ उदाहरण एम म न पाते हैं जिनमें पाया जाता है कि चमड़ा भी लिवन के काम में कुछ कुछ अाता होगा. बौद्ध ग्रंयां में चना नबननामग्री में गिनाग मुबंधु ने अपनी 'वामवदत्ता में अंधकारयुक प्रामाश में रहे हुए नारों को स्वाही मे काले किये हुए चमड़े पर चंद्रमा रूपी ग्वड़िया के टुकड़े मे बनाये ? शन्योिं (विंदिरों ) की उपना दी जमलमेर के 'वृहत ज्ञानकोप नामक अन पुस्तम्भहार में बिना निवे हुए एक चर्मपत्र का हस्तलिखित पुस्तकों के साथ मिलना डॉ बृजर बतलाता है: गया है। . पत्थर ताड़पत्र, भूर्जपत्र (भोजपत्र) या कागज पर लिम्वाहा लेग्व बहुत काल तक बचा नहीं रहना इस लिये जिस घटना की यादगार चिरस्थायी करना होता उसको लोग पत्थर पर खुदवाते थे और अब भी खुदवाते हैं. ऐसे लेग्व चटान, स्तंभ, शिला, मुनियों के अामन या पीठ, पत्थर के पात्रों या उन- २ सॅ.अ,जि २, पृ ११ बू. पं. १३ कञ्चायन की भूमिका पृ २७ पू. पे; पृ १४ . विश्व गण यनो विधातु शिकठिनागपन नमोमगाण्यामंजिन र मसि सभारम्धानिपन्या माध्यविन्दव व वासव दत्ता. हॉल का संस्करण, पृ १८२).