लेखनसामग्री १५० भकीक, स्फटिक आदि कीमती पत्थरों पर भी खुदे हुए छोटे छोटे लेख मिले हैं. बौद्ध लोग पत्थर की नांई मिट्टी की ईटों पर भी अपने धर्मसंबंधी सूत्रों आदि को खुदवाते थे. मथुरा के म्यूजियम में कितने एक बड़ी बड़ी ईंटों के टुकड़े रक्खे हुए हैं जिनकी मोटाई पर एक तरफ की लंबाई की ओर ई. स. पूर्व की पहिली शताब्दी के मासपास की लिपि में बड़े अक्षरों की एक एक पंक्ति खुदी हुई है. अनुमान होता है कि ये इंटे दीवार आदि में एक पंक्ति में लगाई गई होंगी कि उनपर खुदा हुमा प्राशय क्रम से पढ़ा जावे. गोरखपुर जिले के गोपालपुर गांव से नीन इंटें अखंडित और कुछ के टुकड़े मिले हैं जिनके दोनों ओर बौद्ध सूत्र खुदे हैं. ये ईंटें ११, से ६ इंच तक लंबी और ४. से ४६ इंच तक चौड़ी हैं और उनकी एक ओर १२ से १० और दूसरी नरफ़ १२ से १ तक पंक्तियां ई स की तीसरी या चौथी शताब्दी की लिपि में खुदी हुई है नैनीताल जिले के तराई परगने में काशीपुर के निकट के उज्जैन नामक प्राचीन किले से दो ईटें मिली हैं जिनमें से एक पर ' सस्य राज्ञोः श्रीपथिविमित्तस' और दूसरी पर 'राज्ञो मातृमिस पुत्त लेख खुदा हुआ है . ये लेव ई.स. की तीसरी शताब्दी के भासपास के होने चाहिये. कच्ची ईटों पर लेग्व खोद लेने के बाद वे पकाई जाती थीं. ईटों के अतिरिक्त कभी मिट्टी के पात्रों पर भी लेग्य खुदवाये जाते थे और मिट्टी के ढलों पर भिन्न भिन्न पुरुषों, स्त्रियों आदि की मुद्राएं लगी हुई मिलती हैं, जिनके अदर उभड़े हुए होने हैं. पुरुषों की मुद्राओं के अतिरिक्त कितने एक ढेलों पर बौद्धों के धर्ममंत्र 'ये धर्महेतुप्रभवा. की मुद्रा लगी हुई भी मिलती हैं यरतन एवं डेले लेम्ब के ग्वुदने और मुद्रा के लगने के बाद पकाये जाते थे. . ' माना बौद्धों की जातक कथाओं में कभी कभी कुटुंबसंबंधी प्रावश्यक विषयों, राजकीय आदेशों तथा धर्म के नियमों के सुवर्ण के पत्रों पर खुदवाये जाने का उल्लेख मिलता है, परंतु सोना बहुमूल्य होने के कारण उनका उपयोग कम ही होता होगा तक्षशिला के गंगू नामक स्तृप से ग्वरोष्ठी लिपि स्थान । जो पहिले राजा भोज की धनवाई हुई 'मरस्वतीकंठाभरण नामक पाठशाला थी ) में शिलानी पर खुद हुए मिले है मेवाड़ के महागणा कुंभकर्ण ( कुंभा) ने कीर्तिम्तंभा के विषय का कोई पुस्तक शिलानो पर खुदवाया था जिसकी पहिली शिला का प्रारंभ का अंश चित्तौड़ के किले से मिला जिम्मको मैंने वहां से उठवा कर उदयपुर के विक्टोरिया हॉन्न के म्यूज़िश्रम में रखवाया है मेवाड़ के महागणा राजर्मिह । प्रथम ) ने, नलंग भट्ट मधुसूदन के पुत्र रणछोड़ भट्ट रचित 'गजप्रशस्ति' नामक २४ सौ का महाकाव्य बड़ी बड़ी २४ शिलाओं पर खुदवाकर अपन बनवाये हुए 'राजसमुद्र मामक विशाल तालाब के सुंदर बंद पर २५ ताकों में लगवाया जो अब तक यहां पर सुरक्षित है । स्फटिक के टुकड़े पर खुदामा एक छोटा लेख महिनीलु के स्तूप से मिला है ( ऍजि २, पृ ३२८ के पास का प्लट.) • एशिमाटिक सोसाइटी बंगाल के प्रासडिंग्ज़, इ.स. १८९६, १ १०० १०३ डे: बु.:पृ. १२२ के पास का प्लेट. इन लेखों की प्रतिकृतियां ई.स. १९०१ ता ६ डिसंबर के पायोनिश्रा' नामक अलाहाबाद के दैनिक अंग्रेजी पत्र में प्रसिद हुई थीं वलभीपुर ( पळा, काठियावाड़ में ) से मिले हुए मिट्टी के एक बड़े पात्र के टुकड़े पर '[२००] ४०७ श्रीगुहसेन घटा' 'लेख है (.: जि. १४, १७५) यह पात्र वलभी के राजा गुहसेन ( दूसरे के समय का गुप्त सं २४७ । ई स. ५६६-७)का होना चाहिये मा. स रि.स ११०३-४, प्लेट ६०-६२. . देखो, ऊपर पृ.५ और उसी पृष्ठ के टिप्पण ६, ७.८. W
पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१७९
दिखावट