पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१८०

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१५२ प्राचीनलिपिमाला के लेखवाला एक सुवर्ण का पत्रा' जनरल कनिंगहाम को मिला था वर्मा के प्रोम जिले के मज्या नामक गांव के पास से दो सोने के पत्रे खुदे हुए मिले हैं. उनमें से प्रत्येक के प्रारंभ में 'ये धर्महेतुप्रभवा०' श्लोक और उसके पीछे पाली भाषा का गद्य है. उनकी लिपि ई. स. की चौथी या पांचवीं शताब्दी के पास पास की है और उसमें कई अक्षर दक्षिणी शैली के हैं. चांदी. सुवर्ण की नाई कभी कभी चांदी के पत्रों पर भी लेम्व खुदवाये जाने थे. ऐमा एक पत्रा महिमोलू के स्तृप से और दूसरा नक्षशिला से मिला है. जैन मंदिरों में चांदी के गट्टे और यंत्र' मिलते हैं. तांबा लेग्वन सामग्री के संबंध में धातुओं में नांवा सष से अधिक काम में श्राना था राजाभों तथा सामंतों की तरफ से मंदिर, मठ, ब्राह्मण, माधु श्रादि को दान में दिये हुए गांव, ग्वेत, कुए आदि की सनदें तांबे पर प्राचीन काल से ही खुदवा कर दी जाती थी और अब तक दी जाती हैं जिनको 'दानपत्र', 'ताम्रपत्र', 'नाघ्रशासन या 'शामनपत्र कहते हैं. दानपत्रों की रचना अमात्य (मंत्री), सांधिविग्रहिक, बलाधिकृत (सनापति ) या अक्षपटलिक' आदि अधिकारियों में से कोई स्वयं करना या किसी विद्वान् मे कराता था कहीं उस काम के लिये एक अधिकारी भी रहता था, फिर उसको सुंदर अक्षर लिग्वने वाला लेग्वक तांबे के पत्रं पर स्याही मे लिग्नता और मुनार, ठठेरा, मुहार या कोई शिल्पी उसे ग्बोदना धा. कभी कभी नाम्रलग्न रेखाम्प में नहीं किंतु बिंदिश्री मे खुदे हुए भी मिलते हैं. जिम पुरुष की मारफत भूमिदान की मनद नय्यार करने की गजाजा पहुं. चती उसको 'दृतक कहने थे. दृतक का नाम पहुधा दानपत्रों में लिग्वा रहना है. दक्षिण मे मिले १. क, प्रा स रि.जि २, पृ. श्राट ५६ २. , जि ५, पृ. २०१ और उसी के पास का प्लेट E ५. ज रॉ ए सी. इ.स १८१४.६१५ ७६ श्रीराम. ११९२ मामन का प्लेट ५ जैन मंदिर में मर्नियों में गाय पाल में राज हुए नांदी गई गाल प्राकृतिक गन। जिनपर गोकार मंत्र' (नमा अग्हिंनाणं , श्रार बल करल पार मध्य के वृत्त, न न स्थानों में मिल कर प्रा । हश्रा ने में उसको 'नवपदी का गट्टा' कहते ह पम ही भादी . गटी पर यंत्र भी ग्युटे ने अजमेर में नाबर मंप्रदाय क. मंनो के मंदिर में चांदी के ४ नवपद के. गट्टे और करीब एक फुट लंल और उतने ही बाद नांदी के पत्र पर ऋषिमंटलयंत्र' स्यदा है वदी के बड़े मंदिर ( वनांवर्ग में ही बीज नथा मिचक' यंत्रों क ग भी समय हुए है मांधिधिग्रहिक उस राजमंधी को करने में जिम्मको मधि । सुलह ) और 'विर । युद्ध ) का अधि कार होना था. अक्षपटलिक' गज्य क उस अधिकारी को काने जियक अधीन हिसाबबंध। काम पता था परंतु कभी इस शब्द का प्रयोग गज्य क दफ्तर के अध्यक्ष लियनी माता था अनाव संभव है कि दन्तर और रिमाय दोनों ही कहीं कहीं पक ही अधिकारी के अधीन रहते हैं। कश्मीर के राजा ताम्रपत्र तय्यार करने के लिये 'पट्टोपाध्याय नामक अधिकारी रम्पत यह अधिकारी अक्ष- पटलिक के अधीन रहता था ( कल्हणकृत गजतरंगिणी, तरंग । ३६-01 ..देना. ऊपर पृ. १००. टिप्पण ३ " दृतक कभी कभी गजकुमार, गजा का भाई, कोई गज्याधिकारी श्रादि होते थे कभी गजा स्वयं प्राक्षा देना था गजपूताने में स की १४ वीं शताब्दी के पास पास से ताम्रपत्र राजस्थानी हिंदी में लिखे जाने लगे तो भी इतक का नाम रहता था (प्रत दुए)