१७२ प्राचीनलिपिमाला. इस संवत् के साथ जुड़ा हुमा शालिवाहन (सातवाहन ) का नाम संस्कृत साहित्य में ई. स. की १४ वीं शताब्दी के प्रारंभ के पास पास से और शिलालेखादि में पहिले पहिल हरिहर गांव से मिले हुए विजयनगर के यादव राजा बुकराय (प्रथम ) के शक संवत् १२७६ (ई.स. १३५४ ) के दानपत्र में मिलता है, जिसके पीछे शालिवाहन का नाम लिखने का प्रचार पढ़ता गया. विद्वान् रामा सातवाहन (शालिवाहन ) का नाम 'गाथासप्तशती' और 'बृहत्कथा' से साक्षरवर्ग में प्रचलित था अत एव संभव है कि ई स. की १४ वीं शतान्दी के भास पास दक्षिण के विद्वानों ने उत्तरी हिंदुस्तान में चलनेवाले संवत् के साथ जुड़े हुए राजा विक्रम के नाम का अनुकरण कर अपने यहां चलने- वाले 'शक' (शक संवत् ) के साथ दक्षिण के राजा शालिवाहन ( सातवाहन, हाल ) का नाम जोड़ कर 'नृपशालिवाहनशक', 'शालिवाहनशक, 'शालिवाहनशकवर्ष, 'शालिवाहन शकान्द' आदि से इस संवत् का परिचय देना प्रारंभ किया हो. शालिवाहन, सातवाहन नाम का रूपांतर मात्र है और सातवाहन (पुराणों के 'आंध्रभृत्य') वंश के राजाओं का राज्य दक्षिण पर ई. स पूर्व की दूसरी शताब्दी से ई. स. २२५ के आस पास नक रहा था, उनकी राजधानियों में से एक प्रतिष्ठान नगर (पैठण, गोदावरी पर ) भी थी और उनमें सातवाहन (शातकर्णि, हाल ) राजा बहुत प्रसिद्ध भी था अतएव संभव है कि दक्षिण के विद्वानों ने उसीका नाम इस संवत् के साथ जोड़ा हो, परंतु यह निश्चित है कि सातवाहनवंशियों में से किसीने यह मंवत् नहीं चलाया क्यों कि उनके शिलालेम्वों में यह संवत् नहीं मिलता किंतु भिन्न भिन्न राजाओं के राज्यवर्ष (सन् जुलूस) ही मिलते हैं और सातवाहन वंश का राज्य अस्त होने के पीछे अनुमान ११०० वर्ष तक शालिवाहन का नाम इस संवत् के साथ नहीं जुड़ा था. इस लिये यही मानना उचित होगा कि यह संवत् शक जाति के किसी विदेशी राजा या शक जानि का चलाया हुआ है. यह संवत् किस विदेशी राजा ने चलाया इस विषय में भिन्न भिन्न विद्वानों ने भिन्न भिन्न अटकलें लगाई हैं. कोई तुरुष्क (तुर्क, कुशन) वंश के राजा कनिष्क को, कोई क्षत्रप नहपान को, ' देखो ऊपर पृ १७० और टिप्पण ३, ४ २ नृपशालिवाहनशक १२५६ । की, लि म, पृ ७८ लेखसंख्या ४५५) इससे पूर्व के थाणा से मिल हुए देवगिरि के यादव गजा गमबद्र के समय के शक संवत् १२२२ ( ६ स १२६० ) के दानपत्र की छपी हुई प्रति म (कीलि ई. मई, पृ ६७, लेखसंख्या ३७६ ) में 'शालिवाहनशके १२१२' छपा है परंतु डॉ फ्लीट का कथन है कि उक्त ताम्रपत्र का अब पता नहीं है और नउसकी कोई प्रतिकृति प्रसिद्धि में आई और जैस थाना स मिल हुए. स १२७२ के दानपत्र में शरिल- वाहन का नाम न होने पर भी नल में जोड़ दिया गया वैसा ही इसमें भी हुआ होगा (ज रॉ ए सो.स १९९६, पृ ८१३). ऐमी दशा में उक्त ताम्रपत्र को शालिवाहन के नामवाला सब से पहिला लेख मान नहीं सकते .. देखा, इसी पृष्ठ का टि २ ५ शालिवाहनशक १४५६ । ई ए, जि १०.६४ ). + शालिवाहनशकत्रप १४३०. ...माधशु १४ (जि १. ३६६) • शकान्दे शालिवाहस्य सहस्रगा चतुःशनैः । चतुस्त्रिंशन्समैर्युक्ते मग्न्याने गागानक्रमान् ॥ श्रीमुग्वीवत्मरे श्राध्य माघे चामितपक्षक । शिव- रात्रा महातिथ्या पु(पु)रायकाने गुभे दिने ( ज. ए सी, बंब जि १२, पृ. ३८४ ) • सातवाहन-सालवाहन शालिवाहन “शानो हाले मत्स्यभेद'; हाल: मानवारनपार्थिव ( हम अमकार्थकोश ). सालाहणम्मि हालो ( देशीनाममाला वर्ग ८, लोक ६६) शालिवाहन, शालवाहन, सालवाहगा, सालवाहन, सालाहगा, सातवाहन, हालेन्येकस्य नामानि ( प्रबंधचिन्तामणि, पृ २८ का टिप्पण) गाथासप्रशती के अंत कंगवभाग में सातवाहन राजा को शातकर्ण (शातकर्णि) भी कहा है ( डॉ पीटर्सन की ई. स १८५-८६ की रिपोर्ट, पृ ३४६ ) पुराणों में मिलनेवाली मांध्रभृत्य ( सातवाहन ) वंश के राजाओं की नामावली में शातकर्णि, शानकर्ण, यशश्रीशातकर्णि, कुंतलशानकर्ष आदि नाम मिलते है वात्स्यायन के कामसूत्र' में शातकर्णि सातवाहन का कर्नरी (कैंची) से महादेयी मलयवतीको मारना लिखा है-कर्तर्या कुतल: शातकर्णिः शातवाहनो महादेवीं मलयवनी [ जघान ] ( निर्णयसागर प्रेस का छपा हुमा 'कामसूत्र', पृ १४५ ). नासिक से मिले हुए वासिष्ठीपुत्र पुळुमायि के लेख में उसके पिता गौतमीपुत्र शातकर्णि का शक, यवन और पल्हयों को नष्ट करना तथा खखरात बंश (अर्थात् पत्रप नहपान के वंश) को निरवशेष करना लिखा है (. जि ८, पृ ६०). उसी लेख से यह भी पाया जाता है कि उसके अधीन दूर दूर के देश थे. गौतमीपुत्र शातकर्णि सातवाहन वंश में प्रबल राजा हुभा या अतएव संभव है कि शक संवत् के साथ जो शालिवाहन ( सातवाहन) का नाम जुड़ा है वह उसीका सूखक हो और 'गाथासप्तशती', 'पृहत्कथा', तथा 'कामसूत्र' का सातवाहन भी यही हो.
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