भारतीय संवत् २७६ में ) नामक प्राचीन नगर से, जिसको संस्कृत लेखक 'कोलंबपत्तन' लिखते हैं, संबंध रखनेवाली किसी घटना से यह संवत् चला हो'. मलबार के लोग इस को 'परशुराम का संवत्' कहते हैं तथा १००० वर्ष का चक्र, अर्थात् १००० वर्ष पूरे होने पर वर्ष फिर १ से प्रारंभ होना, मानते हैं और वर्तमान चक्र को चौथा चक्र बतलाते हैं परंतु ई. स. १८२५ में इस संवत् या चक्र के १००० वर्ष पूरे हो जाने पर फिर उन्होंने ? से वर्ष लिखना शुरू नहीं किया किंतु १००० से आगे लिखते चले जा रहे हैं जिससे १ कोलम् (किलोन ) एक प्राचीन नगर और वंदरगाद है दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट पर का व्यापार का प्रसिद्ध स्थान होने के कारण पहिले मिसर, यूरप, अरब, चीन आदि के व्यापारी वहां माल खरीदने को आया करते थे. ई स. की ध्वीं शताब्दी के नेस्टोरिअन् पादरी सुजयस ने किलोन का उल्लेख किया है. ई. स. ५१ के अरव लखक ने 'कोल्लम-मल्ल' नाम से इसका उल्लेख किया है (इंपीरिमल गॅज़टियर मॉफ इंडिया, जि २१, पृ २२ ) २. बंबई गॅजेटिभर, जि १, भाग १, पृ. १८३, टिप्पण १ ६. बर्नेल लिखता है कि 'इस संवत् का ई स. ८२४ के सेप्टेबर से प्रारंभ हुआ है ऐसा माना जाता है कि यह कोल्लम ( किलोन ) की स्थापना की यादगार में चला है' (य: सा. ई पे; पृ. ७३), परंतु कोल्लम् शहर ई स. ८२४ से बहुत पुराना है और ई. स की ७ वीं शताब्दी का लेखक उसका उल्लेख करता है (देखो, इमी पृष्ठ का टिप्पण १ ) इस लिये ई स.८२४ में उसका बसाया जाना और उसकी यादगार में इस संवत् का चलाया जाना माना नहीं जा सकता. ट्रावनकोर राज्य के पार्किनालॉजिकल सर्वे के सुपरिटेंडेंट टी ए गोपीनाथ राव का अनुमान है कि स ८२५ में मरुवान् सपीर ईशो नामक ईसाई व्यापारी दूसरे ईसाइयो के साथ कोल्लम में आया हो और उसकी यादगार में वहां के गजा मे यह संवत् चलाया हो [ उस समय ] सारा मलबार देश वस्तुतः एक ही राजा के अधीन था और यदि उसन आशा दी हो कि मरुयान सपीर ईशो के जहाज़ से कालम में उतरने के दिन से लोग अब [ नया] संवत् गिना करें तो सारे मलेनाडू ( मलबार ) के, जिसका वह शासक था, लोगों ने अवश्य उमे शिरोधार्य किया होगा' (ट्रा प्रा. सी, जि २. पृ. ७६.७८-७६, और ना०८ फरवरी ई स १६१८ के पत्र के साथ गोपीनाय गव का मर पास भेजा हुश्रा कोलम् संवत् का वृत्तान्त ) गोपीनाथ राव का यह कथन भी ठीक नहीं कहा जा सकता उक्त कथन का साग बाग्मदा कोट्टयं के ईमाइयों के पास से मिले हुए वहेछन लिपि के ताम्रलेख ह जिनसे पाया जाना है कि मम्मान मर ईश ने कॉलर में तिरिस्सापल्लि ( ईसाइयों का गिरजा ) बनाया और [ मलयार क गज ] स्थाणुरवि के राज्यलमय उसको तरफ के वहां के शासक अय्यंडिगळ निवाडि ने गजमंत्री विजयगदेवर आदि की सलाह म उस गिरज को कुछ भूमि दी और उसकी सहायता के लिये वहां के कुछ कुटुंब भी उसके अधीन कर कुछ अधिकार भी दिय उक्त नान्नजला में कोई संवत् नहीं है केवल राजा के गज्यवर्ष हैं गोपीनाथ गव ने उनकी लिपि का ई. म २६. श्र। ८७० के बीच की अनुमान कर उसीपर से ई. म ८२५ में मम्वान मपार ईशा के कोलम में अान, स्थाणुरवि के समय उसकी अवस्था ७५ वर्ष की होने और उमंक कोलम् मान की यादगार में मलबार के गजा के कोलम् संवत् चलाने की कल्पना कर डाली परंतु न तो ई स ८२५ में मरुवान् सपीर दशा के कॉलम में प्रान का प्रमाण दे और न ई स.८६० और ७० के बीच स्थाणुरधि के विद्यमान होने का कोई सबूत है निलम्यानम् के लव में गाणुरवि और गज- केसरीवर्मन् के नाम है परंतु गजकेसरीवर्मन को उक्त नाम का पहिला चालवंशी गजा मानने के लिये भी कोई चालयंश में उस नाम के कई राजा हुए रे किसी लख या ताम्रपत्र में कोई निश्विन मंवत् न होने की दशा में उसकी लिपि के आधार पर उसका कोई निश्चित समय मान लना सर्वथा भ्रन ही है क्या कि उसमें पचीन पचास ही नहीं किंतु सौ दो सौ या उससे भी अधिक वर्षों की भूल होना बहुत संभव है जैसे कि कायम् से ही मिले हुए बरतु और मलयाळम लिपि के धीरराय के दानपत्र को बर्नेल ने इ स ७७४ का अनुमान किया था परंतु नामिळ आदि दक्षिण की भाषाओं और यहां की प्राचीन लिपियों के प्रसिद्ध विद्वान् गय बहादुर वी वेंकय्या ने उमी ताम्र- पत्र का समय सप्रमाण ई. म. की १४ वीं शताब्दी बनलाया है (एई: जि ४.पृ २९३) काईएमा भी कहते कि मलवार के राजा चेरुमान् पेरुमाल ने अपना देश छोड़ कर मय को प्रस्थान किया नब मे यह संवत् चला हो 'नुहानुल मजाहिदीन' नामक पुस्तक का कर्ता उसका हिजरी सन् २००४ म २५-२६ ) में मुसल्मान होना बतलाता हैं अरब के किनारे के ज़फहार नामक स्थान में एक कद्र है जिसकोमलयार के अबदुर्रहमान सामिरी की कत्र बतलाते है और पैसा भी कहते हैं कि उसपर के लेख में खेरुमान का हिजरी सन् २०२ में वहां पहुंचना श्रीर २१६ में मरना लिखा है ऐ; जि ११, पृ ११६ स,कॉ. पृ ७४), परंतु मलबार गॅज़ाटर का की मि इनेस लिखना है कि उक्त लेख का होना कभी प्रमाणित नहीं हुमा ( मलबार गॅजेटिभर, पृ४१) मलबार में तो यह प्रसिद्धि है कि चेरुमान् बौद्ध हो गया था ( गोपीनाथ राव का मेजा हुमा कोल्लम् संवत् का वृत्तांत ), इस लिये चेरुमार के मुसल्मान ६ जाने की बात पर विश्वास नहीं होता और यदि ऐसा दुमा हो तो भी उस घटना से इस संवत् का चलमा माना नहीं जा सकता क्यों कि कोई हिंदू राजा मुसल्मान हो जाये तो उसकी प्रजा और उसके कुटुंषी उसे बहुत ही घृणा की दृष्टि से देखेंगे और उसको यादगार स्थिर करने की कमी धान प्रमाण नहीं है
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