पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/६४

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३८ प्राचीनलिपिमाला. इटी' नामक एक समाज भारतवर्ष की उस समय की गजधानी कलकत्ता नगर में स्थापन हुना, और बहुत से यूरोपिअन् तथा देशी विद्वान् अपनी अपनी मचि के अनुसार भिन्न भिन्न विषयों में उक्त समाज का उद्देश्य सफल करने को प्रवृत्त हुए. कितने एक विद्वानों ने ऐतिहासिक विषयों के शोध में लग कर प्राचीन शिलालेग्व, दानपत्र, सिके तथा ऐतिहासिक पुस्तकों का टटोलना प्रारंभ किया. इस प्रकार भारतवर्ष की प्राचीन लिपियों पर प्रथम ही प्रथम विद्वानों की दृष्टि पड़ी. ई. म. १७७५ में चार्ल्स विल्किन्स ने दीनाजपुर जिले के बदाल नामक स्थान के पास मिला हुमा एक स्तंभ पर का लेग्व' पढ़ा, जो बंगाल के राजा नारायणपाल के समय का था'. उसी वर्ष में पंडित राधाकांतशर्मा ने टोपरावाले देहली के अशोक के लग्ववाले स्तंभ पर खुदे हुए अजमेर के चौहान राजा अान्नल्लदेव (आना) के पुत्र वीसलदेव (विग्रहराज-चौथे) के तीन लेग्य पढ़े जिनमें से एक [विक्रम ] 'मं. १२२० वैशाग्व शुनि १५' का है. इन मय की लिपि बहुत पुरानी न होने से ये आसानी के साथ पढ़े गये, परंतु उसी वर्ष में जे. एच. हॅरिंग्टन ने बुद्धगया के पास वाली 'नागार्जुनी' और 'यरायर' की गुफाओं में उपर्युक लेम्वों से अधिक पुराने, मग्विरी वंश के राजा अनंतवर्मन् के तीन लेग्व पाये, जिनकी लिपि गुप्ता के ममय के लेग्वों की लिपि में मिलनी हुई होने के कारण उनका पढ़ना कठिन प्रतीत हुआ, परंतु चाल्स विल्किन्म ने ई. म. १७७५ से 8 तक श्रम कर के उन तीनों लेग्वों को पढ़ लिया जिसमे गुप्तलिपि की अनुमान आधी वर्णमाला का ज्ञान हो गया. ई म. १८१८ मे १८२३ नक कर्नल जेम्स टॉड ने गजपूताना के इतिहास की ग्वोज में लग कर राजपूनाना तथा काठियावाड़ में कई प्राचीन लेग्यों का पता लगाया जिनमें मे ई. म. की 9 वीं शताब्दी से लगा कर १५ वीं शताब्दी तक के कई लव उक्त विद्वान् इतिहामलग्वक के गुरु यनि ज्ञानचंद्र ने पड़े और जिनका अनुवाद या मारांश कर्नल टॉड के राजस्थान' नामक पुस्तक में कई जगह छुपा है. श्री जी बेविंग्टन ने मामलपुर के कितने एक मंस्कृत और नामिळ भाषा के प्राचीन लेग्यों को पढ़ कर ई. म १८२८ में उनकी वर्णमालागं तय्यार की . इसी तरह वॉल्टर इलियट ने प्राचीन कनड़ी अक्षरों को पहिचाना और ई म. १८३३ में उनकी वर्णमालाओं को विस्तृत रूप से प्रकट किया ई. म. १८३४ में कप्तान ट्रायर ने इमी उद्योग में लग कर अलाहाबाद (प्रयाग ) के अशोक के लेख वाले नंभ पर खुदे हुए गुप्तवंशी राजा ममुद्रगुप्त के लग्न का कुछ अंश पड़ा और उसी वर्ष में डॉ. मिल ने उसे पूरा पढ़ कर ई. म. १८३७ में भिटार्ग के संभ पर का स्कंदगुप्त का लख' भी पढ़ लिया. . प. गिजि.पृ१३१ यह लख फिर भी छप चुका है। र जि २१६२.६५) ई म १७८१ में चार्ल्स विल्किन्स ने मुंगेर में मिला हुश्रा बंगाल के गजा देवपाल का एक दामपत्र पढ़ा था, परंतु वह भीर म १७८ में छपा ( प रि. जि. १, पृ १२३ ) यह ताम्रपत्र दुमरी बार शुद्धता के साथ आप चुका है ( पैं, जि २१, पृ २५४-५७) ए. रि; जि १, पृ ३७६-८२ को. मि. ए. जि २, पृ. २३०.३७ ई पनि १६, पृ. २१८. बराबर का लेग्य--ए रि.जि २ पृ १६७ ज प. मी बंगा जि ६, पृ ६७४, प्लेट ३६, मं १५, १६, १७, जि १३, पृ ४२८ फ्ली, गुः पृ २२२-२३ नागार्जुनी गुफा के २ लेख - रि: जि.२, पृ. १६८. ज. ए. सो. बंगा, जि १६, पृ ४०१, प्लेट १० पली गु.. पृ २२४-२७ . गुप्तवंशी राजाओं के समय की प्राचीन लिपि की गुप्तलिपि कहते है. नज़क्शन्स ऑफ रॉयल पशिप्राटिक सोसाइटी (जि. २. पृ २६४-६६, प्लेट १३, १५, १७ और १८) ब; मा. स वे इंजि. ३, पृ ७३. ज एसो. बंगा. जि ३. पृ ११८. .. ज. प. सो. बंगा; जि ३, पृ. ३३६. फ्ली; गु.६, ६-१० ज.ए. सो बंगा, जि. ६, पृ. १. फ्ली, गुई:५३-५४ . C .