पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/८२

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५६ प्राचीनलिपिमाला लिरिपत्र नयां यह लिपिपत्र वामिष्टीपुत्र पुलुमायि आदि आंध्रवंशी गजाओं के नामिक के पास की गुफाओं के ७ लेग्वों' मे नय्यार किया गया है. वासिष्ठीपुत्र पुलमायि के लग्न में 'नु' के साथ की 'उ की मात्रा के अंत में एक आड़ी लकीर और लगी हुई है और 'य' में ' को ऊपर और 'ह'को नीचे लिग्वा है जो लेग्वकदोष है. गौतमीपुत्र यज्ञशानकर्णि के लेग्व में पहिले 'न' को पिना कलम उठाये ही पूरा लिग्वा है जिससे उसकी आकृति मधुरा के लेग्वों के दमरे 'न'(लिपिपत्र ) से ठीक मिलनी हुई है. यह दोष अन्यत्र भी पाया जाता है. लिपिपत्र नवें की मूलपंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- सिद्ध(छ) रा वासिठिपुतस मिरपुळमायम संवछरे गकु- मवीमे १०६ गिम्हाण पखे बितोये २ दिव में तरमे १०३ राजरो गोतमोपुनम हिमवतमेरुमदरपवतस- मसारस असिकश्रमकमुळकसुरठकुकुगपगंस अनुपविद- भाकरावविराजम विझवतपारिचातमद्य कलगिरिमच- लिपिपत्र नसवां. यह लिपिपत्र पश्चिमी नवपा,कृष्टक तथा आंध्रवंशी राजाओं के मिकों पर के लेग्वों से नग्यार किया गया है. क्षत्रपों के छोटे मिकों पर लंबा लग्न होने में कितने एक मिकों पर के कोई कोई अक्षर अधिक सिकुड़ गये हैं जिसमे उनकी प्राकृति स्पष्ट नहीं रही (देग्यो 'य' का नीलरा रूप: 'म का दूसरा रूप 'ह'का तीसरा, चौथा और पांचवा म्प; 'क्ष'का पांचवां रूप : 'ज' का दृसरा रूप), और कहीं कहीं खरों की मात्रा भी अम्पष्ट होगई हैं त्रैकटकों के मिकों में 'न, व..'.'. 'त्र', 'ग' और 'ण' केम्प विलक्षण मिलते हैं अांधों के मिकों के अन्तरों में में अंतिम तीन अक्षर ( प. हा, हि ) उपर्युक्त गौतमीपुत्र . वानिष्ठापुत्र पुळूमायि के ४ लखा -- ई: जि =, नामिक के लख, पल र १, मंग्या २, प्लेट २ संख्या ३. प्लेट ६. मंग्या २५: प्लेट ३, संग्या १ श्रा स च इ १. पनर, नासिक की लव संख्या १४, १५: पलेट, संग १२ १३ गातमीपुत्र स्वामिश्रीयज्ञशानकर्णि नामवाल एक लव मे -- . जि , नासिक के लेख, प्लेट १. संख्या २५. मा म ये : जि ४ प्लेट ५५, (नासिक के लेख ) संख्या १६ गौतमीपुत्र शातकर्णि के २ लेखो से -ऍ.ई, जि ८, नापिक केलख. प्लट २. संग्या ४५ श्रा स. वे जि ४. प्लट ५३, नासिक की लख संख्या १३, १४ यदि गानमीपुत्र स्वामिश्रीयशशातकर्णि, गौतमीपुत्र शानकर्णि से भिन्न श्रार पुगणों में दी हुई मांधवंशी राजा की नामावली का २७ यां राजा यशश्रीशातकणि हो तो उसके लम्ब का समय ई स की दुसरी नहीं किनु तीसरी शताब्दी होना चाहिये ये मूल पंक्तियां वासिष्ठीपुत्र पुलुमायि के नासिक के लेख से उद्धृत की गई ह (एँ है; जि ८, नासिक के लेखों की प्लेट १, संख्या २. प्रा. म वे : जि ४. प्लेट ५२. नासिक की लेख सं १५) । बांसवाड़ा राज्य के सिरवाणिया गांव मे मिले हुए पश्चिमी क्षत्रपों के २४०० सिक्कों, राजपूनाना म्युज़ियम (अजमेर) मेंरक्खे हुए १०० से अधिक सिक्कों नथा प्रॉ रापसन् संपादिन ब्रिटिश म्युज़ियम में रक्ख हुए , क्षत्रप और फूटक वंशों के सिक्कों की सूची की पुस्तक के प्लेट ६-१७ से. राजपूताना म्युज़ियम में रक्खे हुए अटक वंशी राजानों के सिको नया प्रों रापसन् को उपर्युक पुस्तक के प्लेट १८ से. मा रापसन की उपर्युक्त पुस्तक के प्लेट १-८ से M