पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१०४

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में कहते हैं कि 'नादिरशाह, चंगेज, तैमूर आदि उसके साधारण सैनिक हैं।' इसके अनंतर भारत के निजी दोषों का भारत-दुर्दैव के सैनिकों के रूप में विवरण है। पहिला स्थान धर्म को दिया जाता है, जिसकी ओट में भारत की बहुत कुछ दुर्दशा हुई है। मतमतांतर का आधिक्य, वर्ण-व्यवस्था की खींचातानी, बालविवाह, विधवा विवाह-निषेध, वृद्ध विवाह, बहुविवाह, समुद्रयात्रा-निषेध आदि से देश की अवनति में बहुत सहायता पहुँची। करोड़ो देवी देवताओं के रहते हुए अन्य लोगो के पीर, गाजीमियाँ आदि की पूजा की जाती है, निमाज पढ़कर निकलते हुए उन म्लेच्छों से अपने बच्चे फूँकवाते हैं, जिनके छुए हुए पानी को भूल से भी पी लेने वाले को अधर्म-भीरु हिंदू हिन्दुत्व से च्युत कर देते थे। वेदांत की कुछ बातें इधर उधर सुनकर भी कितने महाज्ञानी बन जाते हैं और इह लोक की अर्थात् स्वदेश की चिंता छोड़ देते हैं। इसके अनंतर संतोष और बेकारी की पारी आती है, 'थोड़ा कमाना थोड़ा खाना, संतोष परमं सुखं' इस देश वालो की कुछ पालिसी सी रही है, रोटी दाल का जुगाड़ कर लेना ही यहाँ का परम पुरुषार्थ हो रहा है। भारत के पास धन की जो सेना बच गई थी, क्योंकि उसपर बहुत काल से छापे पड़ते रहे है, उसे जीतने के लिए अदालत ( बाजी ), फैशन, घूस, चंदा, तुहफे आदि रास्ते निकाले गए। आपस में ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थपरता, पक्षपात आदि का तो पूरा दौरा दौर है। भारत को दूसरी शक्ति कृषि थी, वह भी निर्बल हो रही है।

चौथे अंक में भारतदुर्दैव रोग, आलस्य, मदिरा और