अंधकार को क्रमशः भारतवर्ष में भेजते हैं। रोग आकर अपनी प्रशंसा करता है और यहाँ के लोगों की उस मूर्खता पर हँसी लेता है जो रोग की दवा आदि व्यवस्था न कर झाड़ फूँक ही में लगे रह कर प्राण खोते हैं। वैद्यक शास्त्र प्रगतिशील न रहा और रोगों की संख्या बढ़ती गई। अफीमची, मदकची आदि की भारत में कमी नहीं और बालस्य का इसमें निवास ही है। कर्मण्यता तथा पुरुषार्थ आलस्य से बहुत दूर रहते हैं। मदिरासक्ति भारतीयों में कितनी है, यह अभी हाल की पिकेटिंग आंदोलन से सब पर विदित है और इसके प्रेमी कितनी प्रकार से तर्क वितर्क कर इसका समर्थन करते है, यह भी विनोदपूर्ण शैली से दिखलाया गया है। इसके अनंतर अज्ञान रूपी अंधकार आता है और भारत भेजा जाता है। भारत अभी तक इतना अविद्या-प्रेमी है कि वह शिक्षा, पठन-पाठन आदि को केवल जीविका का एक साधन मात्र समझता है और इसी से बी० ए०, एम० ए० पास किए हुए युवकगण अपने को विद्वान, आचार्य आदि समझ कर किसी भी व्यवसाय आदि की ओर जाना अपमानजनक मान बैठते हैं।
पाँचवे अंक में एक कमीटी का दृश्य है, जिसमें एक सभापति तथा छ सभ्य हैं। इनमें एक बंगाली, एक महाराष्ट्री, दो देशी, एक कवि तथा एक पत्र-संपादक है। कमीटी का मूल उद्देश्य भारतदुर्दैव की चढ़ाई को रोकना है। 'हुज्जते बंगाला' प्रसिद्ध है, इससे बंगाली सभ्य खूब गोलमाल मचाने की पहिले राय देते हैं पर यह कितना उपहासास्पद है यह उसी सभ्य के दूसरे उपाय से ज्ञात हो जाता है जैसे स्वेज नहर को पिसान से