पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/११९

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गया, जिस प्रकार आज कल सिनेमा चित्रपटों में अदालत का तमाशा होता है । बकरी दबने के कारण किसी को फाँसी दी जानी चाहिए इसलिए कोतवाल ही उसके लिए योग्य पात्र चुने गए । जैसा दावा वैसा फैसला ।

पाँचवें अंक में गोवर्द्धनदास गाते हुए आते हैं । इस गान में कुछ मर्म की बाते हैं, जो अत्यंत स्पष्ट रूप से कही गई है। इसके अनंतर टके सेर की मिठाई खाकर खूब तैयार हुए बलिपशु के समान गोवर्द्धनदास पकड़े जाते हैं । कारण केवल इतना ही बतलाया गया कि फॉसी का फंदा बड़ा है और कोतवाल हैं दुबले अतः न फॉसी का फंदा छोटा हो सकता है और न बकरी की जान के बदले किसी का जान लेना रुक सकता है। राजा की न्याय-विभीषिका से कोई मुटाता नहीं था इसलिए यही बाबा जी मुफ्त के मिले।

छठे अंक में गोवर्द्धनदास रोता चिल्लाता है, गुरुजी आ पहुँचते हैं और एक चाल चलते है कि स्वर्ग जाने का ठीक यही मुहूर्त है, इस समय जो मरेगा वह सीधा स्वर्ग पहुँच जायगा। अंधेर नगरी के सभी मूर्खों के इस अवसर का लाभ उठाकर स्वर्ग सिधारने का प्रयास करने के साथ यह प्रहसन समाप्त होता है।



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१२-सतीप्रताप

यह एक गीति-रूपक है, जिसे भारतेन्दु जो ने सं०.१९४१ के लगभग लिखना आरम्भ किया था। इसके प्रथम कुछ दृश्य