पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१२९

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भारतेंदु-नाटकावली

(विराट के अमात्य के साथ अर्जुन आता है)

अ०-(उत्साह से) दैव अनुकूल जान पड़ता है क्योकि-

जो औषध खोजत रहै मिलै सु पगतल आइ।
बिना परिश्रम तिमि मिल्यौ कुरुपति आपुहि धाइ॥

सू०-(हर्ष से देखकर) अरे यह शामलक तो अर्जुन का भेस लेकर आ पहुँचा, तो अब मैं और पात्रो को भी चलकर बनाऊँ।

[जाता है

इति प्रस्तावना।

अ०-(हर्ष से)

गोरक्षन, रिपु-मान-बध, नृप विराट को हेत।

समर हेत इक बहुत सब भाग मिल्यौ या खेत॥
और भी
वहै मनोरथ फल सुफल, वहै महोत्सव हेत।

जो मानी निज रिपुन सो अपुनो बदलो लेत॥

अमा०-देव, यह आपके योग्य संग्राम-भूमि नहीं है।

जिन निवात-कवचन बध्यौ, कालकेय दिय दाहि।
शिव तोष्यौ रनभूमि जिन, ये कौरव कहँ ताहि॥

अ०-वाह सुयोधन वाह ! क्यों न हो।

लह्यौ बाहुबल जीति कै जो तुव पुरुखन राज।
सो तुम जूआ खेलि कै जीत्यौ सहित समाज॥