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लिखे हैं और इसके नाटक इतने शास्त्र-सम्मत तथा पूर्ण हैं कि यह निश्चय-पूर्वक कहा जा सकता है कि इसके समय के पहिले अवश्य ही बहुत से नाटक रहे होंगे, जिन्हें आदर्श रूप रखकर ही ये तैयार हो सके हैं। शारीपुत्र प्रकरण के साथ जो दो नाटकों के अंश मिले हैं, उनके रचेता के नाम नहीं ज्ञात हुए हैं पर अधिकतर संभव है कि वे अश्वघोष की ही रचनाएँ हों।
अश्वघोष के अनंतर भास का नाम आता है, जिसके तेरह नाटक बीसवीं शताब्दि ईसवी के आरंभ में मिले हैं। दूत-घटोत्कच, उरु-भंग, कर्णभार, दूतवाक्य, मध्यम व्यायोग, बाल चरित, पंचरात्रि, प्रतिमा नाटक, अभिषेक, अविमारक, प्रतिज्ञा-यौगंधरायण, स्वप्नवासवदत्ता और चारुदत्त ये तेरह नाटक हैं। इनमें प्रथम सात का महाभारत, दो का रामायण तथा अन्य का कथा-वस्तु कथा-सरित्सागर से लिया गया है। भास का समय ईसवी तृतीय शताब्दि माना जाता है। भास का चारुदत्त नाटक अपूर्ण है और इसके केवल चार अंक प्राप्त है। शूद्रक के मृच्छकटिक के प्रथम चार अंक इससे बहुत मिलते है। आगे का अंश मिलता नहीं। शूद्रक ने राजनीति तथा प्रेम के षड्यंत्रो का सफलतापूर्वक सम्मिलन करा दिया है और यही उसकी विशेषता है। इसका समय भास और कालिदास के बीच में है। शूद्रक नाम वास्तविक है या नहीं इसमें संदेह ही है।
महाकवि कालिदास का समय तृतीय गुप्त-सम्राट् चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का समय माना जाता है, जिसने सन् ४१३