पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१४

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ई॰ तक राज्य किया था। इन्होंने मालाविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय तथा अभिज्ञान शाकुंतल तीन नाटक लिखे हैं। इनके तथा इन नाटकों और मुख्यतः शाकुंतल के विषय में इतना ही कहना अलम् है कि संस्कृत साहित्य के इतिहास में ये अद्वितीय हैं। कालिदास के बाद श्रीहर्ष का समय आता है, जिन्होंने तीन नाटक रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानंद लिखा है। श्रीहर्ष स्थाणीश्वर का राजा था और इसका राज्यकाल सन् ६०६ ई॰ से ६४८ ई॰ तक है। इसी के दरबार में सुप्रसिद्ध साहित्यकार वाणभट्ट रहते थे। इन्हीं श्रीहर्ष के समय के आसपास या समकालीन ही चंद्रक तथा महेन्द्र विक्रमवर्मा दो अन्य नाटककार हुए हैं। महेन्द्र विक्रम कांची का राजा था और इसका प्रहसन मत्तविलास प्राप्त है। मुद्राराक्षस के रचेता विशाख दत्त का समय विशिष्ट रूप से चंद्रगुप्त द्वितीय का ही माना जाना चाहिए पर अभी यूरोपीय विद्वान नवीं शताब्दि तक उन्हे खींच लाने में नहीं हिचकते। इनके एक अन्य नाटक देवी चंद्रगुप्तम् का भी पता लगा है, जो गुप्त-सम्राट् चंद्रगुप्त द्वितीय के चरित्र पर निर्मित है।

संस्कृत साहित्य के अद्वितीय नहीं तो द्वितीय नाटककार भवभूति का समय अब आता है, जिनके तीन नाटक मालती-माधव, उत्तररामचरित तथा महावीरचरित प्राप्त और प्रसिद्ध है। भवभूति सातवीं शताब्दि ईसवी के अंत में हुए थे। भट्ट-नारायण का समय सातवीं शताब्दि अनुमान किया जाता है और इन्होंने वेणीसंहार नाटक लिखा है। आठवीं शताब्दि के कुछ नाटककारों के नाम मिलते हैं, जिनकी रचनाओ के कुछ