पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
भारतेंदु नाटकावली

अमा०-महाराज जो आज्ञा।[जाता है

अ०-(कुमार से) देखो, गऊ दूर न निकल जाने पावै, घोड़ों को कसके हॉको।

कु०-(रथ हॉकना नाट्य करता है)

अ०-(रथ का वेग देखकर)

लीकहु नहिं लखि परत चक्र की, ऐसे धावत।

दूर रहत तरु-वृंद छनक मैं आगे आवत॥
जदपि वायु-बल पाइ धूरि आगे गति पावत।
पै हय, निज-खुर-वेग पीछहीं मारि गिरावत॥
खुर-मरदित महि चूमहिं मनहु धाइ चलहिं जब बेगि गति।

मनु होड़ जीत-हित चरन सो आगेहि मुख बढि जात अति॥

(नेपथ्य की ओर देखकर) अरे अरे अहीरो! सोच मत करो, क्योंकि-

जब लौं बछरा करुना करि महि तृन नहिं खैहैं।

जब लौं जननी बाट देखिकै नहिं डकरैहै॥
जब लौं पय पीयन हित वे नहिं व्याकुल ह्वैहैं॥

ताके पहिलेहि गाय जीतिक हम ले ऐहैं॥

(नेपथ्य में) बड़ी कृपा है।

कु०-महाराज ! अब ले लिया है कौरवों की सेना को, क्योकि-

हय-खुर-रज सों नभ छयो वह आगे दरसात।
मनु प्राचीन कपोत गल सांद्र सुरुचि सरसात॥