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भारतेंदु-नाटकावली
कु०-अब इससे बढ़कर और क्या साहस होगा?
अ०-इधर देखो (हाथ जोड़कर प्रणाम करके)
सूरज को प्रतिबिंब जाहि मिलि जाल तनावत॥
अस्त्र उपनिषद भेद जानि भय दूर भजावत।
कु०-यह तो बड़े महानुभाव से जान पड़ते है।
अ०-इधर देखो।
अस्त्र-रूप मनु आप, दूसरो दुसह पुरारी॥
सत्रुन कों नित अजय मित्र को पूरनकामा।
कु०-हाँ और बताइए।
अ०-
कनक-कलस धरि धुज धस्यौ, सो कृप कुरु-गुरु आप॥
कु०-और यह कुरुराज के सामने लड़ाई के हेतु फेट कसे कौन खड़ा है?
अ०-(क्रोध से)
भृगुपति छलि लहि अस्त्र वृथा गरजत अघखानी॥
सूत-सुअन बिनु बात दरप अपनो प्रगटावत।