पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१५

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अंश लक्षण ग्रंथों में मिल जाते हैं। कान्यकुब्जेश्वर यशोवर्मा के एक नाटक रामाभ्युदय का पता चलता है पर वह अप्राप्त है और शिव स्वामी के कई नाटको का पता चलता है पर मिले एक भी नहीं है। तापस वत्सराज के लेखक अनंगहर्ष मात्रराज का समय भी निश्चित नहीं है। मायुराज का उदात्तराघव अप्राप्त है। इस काल के अन्य दो नाटक पार्वती-परिणय और मल्लिकामारुत, वाणभट्ट तथा दंडी कृत माने जाते थे पर वे वास्तव में क्रमशः वामनभट्ट वाण तथा उद्दंडिन् कृत हैं। धनिक ने दशरूप की कारिका में रामाभ्युदय के सिवा छलितराम, पांडवानंद तथा दो तीन प्रकरण आदि का उल्लेख किया है। मुरारि के अनर्घराघव का समय नवीं शताब्दि माना जाता है। यही काल राजशेखर का है, जिसने कर्पूरमंजरी, बालरामायण, विद्धशालभंजिका और बालभारत चार नाटक लिखे हैं। राजशेखर ने अपने समकालीन नाटककार भीमट के पाँच नाटको का उल्लेख किया है। इसी काल में क्षेमीश्वर हुए जिनका चंड-कौशिक प्रसिद्ध है। इनका दूसरा नाटक नैषधानंद है। इसके अनंतर ग्यारहवीं शताब्दि से अबतक के जो नाटक मिलते हैं, उनमें कृष्णमिश्र का प्रबोध चंद्रोदय, जयदेव का प्रसन्न राघव, रविवर्मा का प्रद्युम्नाभ्युदय, रूप गोस्वामी का विदग्धमाधव तथा ललित माधव, शेष कृष्ण का कंसवध, रामवर्मा का रुक्मिणी-परिणय आदि उल्लेखनीय है। इनके सिवा प्रकरण, व्यायोग आदि छोटे छोटे रूपक बहुत से लिखे गए पर उन सबका नाम भी उल्लेख करने का यहाँ स्थानाभाव है।

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