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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१६

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भाषाओं में नाटक न लिखकर संस्कृत ही में लिखने का जो अप्राकृतिक प्रयास किया था उसी कारण नाटक का प्रायः ह्रास सा रहा। मुसल्मानी राज्य होने पर उनसे संस्कृत को सहायता मिली ही नहीं, क्योंकि वह जनसाधारण की भाषा न होकर धर्म की भाषा समझी जाती थी। संस्कृत ग्रंथो के फारसी अनुवाद किए जाने का प्रयास कुछ कुछ हुआ था पर संस्कृत के ग्रंथ-प्रणयन की ओर दृष्टि नहीं देना ही सहज स्वाभाविक था इसलिए संस्कृत नाट्य-रचना-काल प्रायः सोलहवीं शताब्दि के अंत तक समझना चाहिए और हिंदी में नाटक रचना का आरंभ नाम मात्र के लिए उसी समय हो गया था पर वास्तव में इसका आरंभ भारतेंदुकाल से ही होता है।




२—हिंदी नाटक

संस्कृत नाटकों का जो इतिहास ऊपर लिखा गया है उससे ज्ञात होता है कि यह सिलसिला मुसल्मानी आक्रमणो के आरंभ होने पर प्रायः बंद सा हो गया। यद्यपि मुगल राजत्वकाल के रचित कुछ नाटक मिलते हैं और प्रायः वर्तमानकाल में एकाध अच्छे नाटक लिखे भी गए हैं पर वास्तव में वह शृंखला उसी समय से बंद ही सी है। नाटकों के लिए बोलचाल ही की भाषा अधिक उपयुक्त होती है और यही कारण है कि यह नाटक-शृंखला संस्कृत से ब्रजभाषा, अवधी आदि में होती हुई वर्तमान खड़ी बोली तक नहीं चली आई है। बीच के काल में परंपरा की काव्य भाषा ही का जोर अधिक था और अच्छे साहित्य-सेवी