पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१५६

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सत्यहरिश्चंद्र


मंगलाचरण

दोहा

सत्यासक्त दयाल द्विज प्रिय अघहर सुखकद।
जनहित कमलातजन जय शिव नृप कवि हरिचन्द*[१]

( नांदी के पीछे सूत्रधार+[२] आता है )

सूत्र०---अहा! आज की संध्या भी धन्य है कि इतने गुणज्ञ और रसिक लोग एकत्र हैं और सबकी इच्छा है कि हिंदी भाषा का कोई नवीन नाटक देखें। धन्य है विद्या का प्रकाश कि जहाँ के लोग नाटक किस चिड़िया का नाम है इतना भी नहीं जानते थे, भला वहाँ अब लोगो


  1. * यह श्लेष शिवजी, राजा हरिश्चन्द्र, श्रीकृष्ण, चन्द्रमा और कवि पाँच का वर्णन करता है।
  2. +सूत्रधार हरे वा नीले रंग की साटन का कामदार जाँघिया पहिने, उसके आगे पटुके की तरह कमरबंद के दोनों किनारे नीचे-ऊपर लटकते हुए, गले में चुस्त सामने बुताम की मिरजई, ऊपर माला वगैरह और सब गहने, सिर पर टिपारा, पैर में घुँघरू, हाथ में छड़ी, सिर पर मुकुट।