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भारतेंदु-नाटकावली

हरि०---तब क्या चिंता है? शास्त्र और ईश्वर पर विश्वास रखो, सब कल्याण होगा। सदा सर्वदा सहज मंगल-साधन करते भी जो आपत्ति आ पड़े तो उसे निरी ईश्वर की इच्छा ही समझ के संतोष करना चाहिए।

रानी---महाराज! स्वप्न के शुभाशुभ का विचार कुछ महाराज ने ग्रंथो में देखा है?

हरि०---( रानी की बात अनसुनी करके ) स्वप्न तो कुछ हमने भी देखा है। ( चिंतापूर्वक स्मरण करके ) हॉ, यह देखा है कि एक क्रोधी ब्राह्मण विद्यासाधन करने को सब दिव्य महाविद्याओ को खींचता है और जब मैं स्त्री जानकर उनको बचाने गया हूँ तो वह मुझी से रुष्ट हो गया है और फिर जब बड़े विनय से मैंने उसे मनाया है तो उसने मुझसे मेरा सारा राज्य माँगा है, मैंने उसे प्रसन्न करने को अपना सब राज्य दे दिया।

( इतना कहकर अत्यत व्याकुलता नाट्य करता है )

रानी---नाथ! आप एक साथ ऐसे व्याकुल क्यो हो गए?

हरि०---मैं यह सोचता हूँ कि अब मैं उस ब्राह्मण को कहाँ पाऊँगा और बिना उसकी थाती उसे सौंपे भोजन कैसे करूँगा?

रानी---नाथ! क्या स्वप्न के व्यवहार को भी आप सत्य मानिएगा?