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भारतेंदु-नाटकावली

( सड़क पर शैव्या और बालक फिरते हुए दिखाई पड़ते हैं )

शैव्या---कोई महात्मा कृपा करके हमको मोल ले तो बड़ा उपकार हो।

बालक---अमको बी कोई माल ले तो बला उपकाल ओ।

शैव्या---( आँखों में आँसू भरकर ) पुत्र! चंद्र-कुल-भूषण महाराज वीरसेन का नाती और सूर्यकुल की शोभा महाराज हरिश्चंद्र का पुत्र होकर तू क्यों ऐसे कातर वचन कहता है। मैं अभी जीती हूँ। ( रोती है )

बालक---( मॉ का अंचल पकड़ के ) माँ! तुमको कोई मोल लेगा तो अमको बी मोल लेगा। आँ आँ माँ लोती काए को औ। ( कुछ रोना सा मुँह बनाके शैव्या का आँचल पकड़के झूलने लगता है )

शैव्या---( आँसू पोंछकर ) मेरे भाग्य से पूछ।

हरि०---अहह! भाग्य! यह भी तुम्हे देखना था? हा! अयोध्या की प्रजा रोती रह गई, हम उनको कुछ धीरज भी न दे आए। उनकी अब कौन गति होगी। हा! यह नहीं कि राज छूटने पर भी छुटकारा हो। अब यह देखना पड़ा। हृदय! तुम इस चक्रवर्ती की सेवायोग्य बालक और स्त्री को बिकता देखकर टुकड़े-टुकड़े क्यो नहीं हो जाते? ( बारंबार लंबी साँस लेकर आँसू बहाता है )