पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२००

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सत्यहरिश्चंद्र

विशेष हम क्या समझा, जो-जो दैव दिखावे उसे धीरज से देखना। ( आँसू बहते हैं )

शैव्या---जो आज्ञा। ( राजा के पैरो पर गिर के रोती है )

हरि०---( धैर्यपूर्वक ) प्रिये, देर मत करो, बटुक घबड़ा रहे हैं।

( शैव्या उठकर रोती और राजा की ओर देखती हुई धीरे-धीरे चलती है )

बालक---( राजा से ) पिता, मा कआँ जाती ऐं?

हरि०---( धैर्य से ऑसू रोककर ) जहाँ हमारे भाग्य ने उसे दासी बनाया है।

बालक---( बटुक से ) अले मा को मत ले जा। ( माँ का आँचल पकड़के खींचता है )

बटु०---( बालक को ढकेलकर ) चल-चल देर होती है।

( बालक ढकेलने से गिरकर रोता हुआ उठकर अत्यत क्रोध और करुणा से माता-पिता की ओर देखता है )

हरि०---ब्राह्मण देवता, बालकों के अपराध से नहीं रुष्ट होना चाहिये। ( बालक को उठाकर धूर पोछ के मुँह चूमता हुआ ) पुत्र, मुझ चॉडाल का मुख इस समय ऐसे क्रोध से क्यो देखता है? ब्राह्मण का क्रोध तो सभी दशा में सहना चाहिए। जाओ माता के संग, मुझ भाग्यहीन के साथ रहकर क्या करोगे? ( रानी से ) प्रिये, धैर्य