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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२०१

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भारतेंदु-नाटकावली

धरो। अपना कुल और जाति स्मरण करो। अब जाओ, देर होती है।

( रानी और बालक रोते हुए बटुक के साथ जाते है )

हरि०---धन्य हरिश्चंद्र! तुम्हारे सिवाय और ऐसा कठोर हृदय किसका होगा? संसार में धन और जन छोड़कर लोग स्त्री की रक्षा करते हैं, पर तुमने उसका भी त्याग किया।

( विश्वामित्र आते हैं और हरिश्चन्द्र पैर पर गिरकर प्रणाम करता है )

विश्वा०---ला, दे दक्षिणा! अब सॉझ होने में कुछ देर नहीं है।

हरि०---( हाथ जोड़कर ) महाराज, आधी लीजिए आधी अभी देता हूँ। ( सोना देता है )

विश्वा०---हम आधी दक्षिणा लेके क्या करे, दे चाहे जहाँ से सब दक्षिणा।

( नेपथ्य में )

धिक् तपो धिक् व्रतमिदं धिक् ज्ञानं धिक् बहुश्रुतम्।
नीतवानसि यद्वह्मन् हरिश्चंद्रमिमां दशाम्॥

विश्वा०---( बड़े क्रोध से ) आ: हमको धिक्कार देने वाला यह कौन दुष्ट है? है? ( ऊपर देखकर ) अरे विश्वेदेवा, ( क्रोध से जल हाथ में लेकर ) अरे क्षत्रिय के पक्षपातियो, तुम अभी विमान से गिरो और क्षत्रिय के कुल में तुम्हारा