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सत्यहरिश्चंद्र

जन्म हो और वहाँ भी लड़कपन हो में ब्राह्मण के हाथ मारे जाओ*। ( जल छोड़ते है )

( नेपथ्य में हाहाकार के साथ बडा शब्द होता है )

( सुनकर और ऊपर देखकर आनंद से ) हहहह! अच्छा हुआ! यह देखो, किरीट-कुंडल बिना मेरे क्रोध से विमान से छूटकर विश्वेदेवा उल्टे हो होकर नीचे गिरते हैं। और हमको धिक्कार दे।

हरि०---( ऊपर देखकर भय से ) वाह रे तप का प्रभाव!( आप ही आप ) तब तो हरिश्चंद्र को अब तक शाप नहीं दिया है यह बड़ा अनुग्रह है! ( प्रगट ) भगवन्, स्त्री बेचकर यह आधा धन पाया है सो लें, और आधा हम अपने को बेचकर अभी देते हैं।

( नेपथ्य में )

अरे, अब तो नहीं सही जाती।

विश्वा०---हम आधा न लेंगे, चाहे जहाँ से अभी सब दे।

( हरिश्चन्द्र 'अरे सुनो भाई सेठ साहूकार' इत्यादि पुकारता हुआ घूमता है। चांडाल के वेष में धर्म और सत्य आते हैं )


  • यही पाँचो विश्वेदेवा विश्वामित्र के शाप से द्वापर में द्रौपदी के

पाँच पुत्र हुए थे, जिन्हें अश्वत्थामा ने बालकपन ही में मार डाला।

काँछा कछे, काला रंग, लाल नेत्र, सिर पर छोटे छोटे घुँघराले बाल और शरीर नंगा, बातों से मतवालापन झलकता हुआ।