पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२१

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नाटकों का अनुवाद आरंभ हुआ है, जिससे केवल गद्य-मय नाटक लिखने की प्रथा चल निकली। पद्य के लिए दो चार गाने इतस्ततः दे दिए जाते थे। सामाजिक चित्रण अधिक होने लगा। बा॰ रवीन्द्रनाथ ठाकुर के नाटक भी अनूदित हुए। बा॰ गिरीशचंद्र घोष, क्षीरोदबाबू, बा॰ शिशिर कुमार घोष आदि अन्य प्रसिद्ध नाटककारों के भी कुछ नाटको का अनुवाद हुआ। ऐसे अनुवादकों में पं॰ रूपनारायण पाण्डेय का नाम उल्लेखनीय है। सं॰ १९७० वि॰ में उत्तररामचरित का अनुवाद पं॰ सत्यनारायण कविरत्न ने प्रकाशित कराया और उसके तीन वर्ष बाद बा॰ कृष्णचंद्र जी का इसी का अनुवाद प्रकाशित हुआ। कविरत्न जी का मालतीमाधव का अनुवाद भी इसी समय निकला। ये अनुवाद बहुत अच्छे हुए हैं। सुप्रसिद्ध संस्कृत नाटककार भास के तेरह नाटक हाल ही में प्राप्त हुए हैं, जिनमें से एकाध के कई अनुवाद निकल चुके हैं। बा॰ ब्रजजीवनदास इन समग्र नाटको का गद्य-पद्य मय अनुवाद कर रहे हैं, जिनमें तीन पंचरात्रि, मध्यम व्यायोग तथा प्रतिज्ञा यौगंधरायण के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।

वर्तमान मौलिक नाटककारों में बा॰ जयशंकर प्रसाद जी का नाम पहिले लिया जाता है। अजातशत्रु, जन्मेजय का नाग यज्ञ, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि ऐतिहासिक नाटक उल्लेखनीय हैं। इनमें तत्कालीन समाज के चित्र देने का अच्छा प्रयास है। इन नाटकों की भाषा कुछ अधिक गंभीर तथा क्लिष्ट हो गई है। पं॰ गोविंदवल्लभपंत की वरमाला, पं॰ बद्रीनाथ भट्ट की दुर्गावती आदि अच्छे नाटक हैं।