पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२२

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३—नाटककार-परिचय

हिंदी के सुप्रसिद्ध महाकवि बाबू गोपालचंद्र, उपनाम बाबू गिरधरदास जी के पुत्र आधुनिक हिंदी के जन्मदाता गोलोकवासी भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने निज 'उत्तरार्ध-भक्तमाल' में अपने वंश का परिचय निम्नलिखित दोहों में दिया है—

पूर्वजगण

वैश्य अग्र-कुल मैं प्रगट बालकृष्ण कुलपाल।
ता सुत गिरधर-चरन-रत वर गिरिधारी लाल॥
अमीचंद तिनके तनय फतेचंद ता नंद।
हरषचंद जिनके भये निज-कुल-सागर चंद॥
तिनके सुत गोपाल ससि, प्रगटित गिरधरदास।
कठिन करम गति मेटि जिन, कीना भक्ति प्रकास॥
पारवती की कोख सों, तिनसो प्रगट अमंद।
गोकुलचंद्राग्रज भयो भक्त-दास हरिचंद॥

पूर्वोक्त उद्धरण से यह ज्ञात हो जाता है कि इनके पूर्वजों में राय बालकृष्ण तक का ही ठीक-ठीक पता चलता है। सेठ बालकृष्ण के पूर्वजों का दिल्ली के मुगल-सम्राट-वंश से विशेष सम्बन्ध था; पर उस शाही घराने के इतिहासो में इस वंश का कोई उल्लेख मुझे अभीतक नहीं मिला। जिस समय शाहजहाँ का द्वितीय पुत्र सुल्तान शुजाअ बंगाल का सूबेदार नियुक्त होकर राजमहल आया था उस समय इनका वंश भी उसी के साथ बंगाल चला आया। जब बंगाल के नवाबों की राजधानी राजमहल से उठ के मुर्शिदाबाद को चली गई तब यह वंश भी