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मुर्शिदाबाद में आ बसा। इन दोनों स्थानों में इनके पूर्वजों के विशाल महलों के खण्डहर अब तक वर्तमान हैं।
मुर्शिदाबाद में इस वंश की कई पीढ़ियो ने बड़े सुख से दिन व्यतीत किए थे। सेठ बालकृष्ण के पौत्र तथा गिरधारी लाल के पुत्र सेठ अमीनचंद के समय में बंगाल में अँग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो सेठ अमीनचंदगया था और उस प्रांत में उनका राजत्वकाल प्रारम्भ हो चुका था, यह भी अँग्रेजों के एक प्रधान सहायक थे और लगभग चालीस वर्ष से कलकत्ते में व्यापार कर रहे थे। आरम्भ में निज व्यापार को फैलाने में, अँग्रेजों ने इनसे बहुत सहायता ली थी, पर उसके जमजाने पर उन्होने इन पर दोष लगा कर इन्हें अलग कर दिया। इसी समय बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने कलकत्ते पर चढ़ाई कर उसे लूट लिया और अमीनचंद का भी चार लाख रुपया नकद और सामान लुट गया। इनके घर द्वार जला दिए गए और इनके परिवार की कई स्त्रियाँ और पुरुष जल कर मर गए। अँग्रेजो ने अन्य प्रांतो से सहायता प्राप्त कर पलासी के युद्ध में नवाब को परास्त कर गद्दी से उतार दिया और उनके स्थान पर मीरजाफर को बैठाया। इस षड्यंत्र में अमीनचंद भी सम्मिलित थे पर उसके सफल होने पर पुरस्कार बाँटने के समय इनका नाम तक न लिया गया, जिससे इन्हे इतना क्षोभ हुआ कि इस घटना के डेढ़ ही वर्ष के उपरान्त उनकी मृत्यु हो गई।
सेठ अमीनचंद के पुत्र फतेहचंद जी इस घटना से अत्यंत विरक्त होकर सं॰ १८१६ के लगभग काशी चले आए। काशी