पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०८
भारतेंदु-नाटकावली

हरि०---योगिराज! हमको भूल न जाइएगा, कभी-कभी स्मरण कीजिएगा।

धर्म---महाराज! बड़े-बड़े देवता आपका स्मरण करते हैं और करेंगे, मैं क्या कहूँ।

[ जाता है

हरि०---क्या रात बीत गई! आज तो कोई भी मुरदा नया नहीं आया। रात के साथ ही श्मशान भी शांत हो चला, भगवान् नित्य ही ऐसा करे।

( नेपथ्य में घंटा नूपुरादि का शब्द सुनकर )

अरे! यह बड़ा कोलाहल कैसा हुआ?

( विमान पर अष्ट महासिद्धि, नव निधि और बारहों प्रयोग आदि देवता* आते हैं )

हरि०---( आश्चर्य से ) अरे ये कौन देवता बड़े प्रसन्न होकर श्मशान पर एकत्र हो रहे है?

देवता---महाराज हरिश्चंद्र की जय हो। आपके अनुग्रह से


  • साधारण देवी-देवताओं के वेश में। अष्ट महासिद्धि, यथा अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व

और वशित्व। नवनिधि, यथा---पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और वच्र्चस्। बारह प्रयोग, यथा---मारण, मोहन, उच्चाटन, कीलन, विद्वेषण और कामनाशन---ये छः बुरे और स्तभन, वशीकरण, आकर्षण, बदीमोचन, कामपूरण और वाक्प्रसारण---ये छः अच्छे। ये भी चित्रपट में दिखलाए जायँगे।