फूल बरसते हैं, और भगवान् नारायण प्रगट होकर राजा हरिश्चन्द्र का हाथ पकड़ लेते हैं )
भग०---बस महाराज बस! धर्म और सत्य सबकी परमावधि हो गई। देखो, तुम्हारे पुण्य-भय से पृथ्वी बारंबार कॉपती है, अब त्रैलोक्य की रक्षा करो। ( नेत्रो से ऑसू बहते हैं )
हरि०---( साष्टांग दंडवत् करके रोता हुआ गद्गद् स्वर से ) भगवन्! मेरे वास्ते आपने परिश्रम किया! कहाँ यह श्मशान-भूमि-कहाँ यह मर्त्यलोक, कहाँ मेरा मनुष्य शरीर, और कहाँ पूर्ण परब्रह्म सच्चिदानंदधन साक्षात् आप! ( प्रेम के आँसुओं से और गद्गद् कंठ होने से कुछ कहा नहीं जाता )
भग०---( शैव्या से ) पुत्री! अब सोच मत कर। धन्य तेरा सौभाग्य कि तुझे राजर्षि हरिश्चंद्र ऐसा पति मिला है। ( रोहिताश्व की ओर देखकर ) वत्स रोहिताश्व! उठो। देखो, तुम्हारे माता-पिता देर से तुम्हारे मिलने को व्याकुल हो रहे हैं।
( रोहिताश्व उठ खडा होता है और आश्चर्य से भगवान् को प्रणाम करके माता-पिता का मुँह देखने लगता है, आकाश से फिर पुष्पवृष्टि होती है। हरिश्चन्द्र और शैव्या आश्चर्य, आनन्द, करुणा और प्रेम से कुछ कह नहीं सकते। आँखों से आँसू बहते हैं और एकटक भगवान् के