पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२४१

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सत्यहरिश्चंद्र

मुखारविंद की ओर देखते हैं। श्रीमहादेव, पार्वती, भैरव, धर्म, सत्य, इंद्र और विश्वामित्र आते हैं )*

सब---धन्य महाराज हरिश्चंद्र धन्य! जो आपने किया सो किसी ने न किया, न करेगा।

( राजा हरिश्चन्द्र, शैव्या और रोहिताश्व सब को प्रणाम करते हैं )

विश्वा०---महाराज! यह केवल चंद्र-सूर्य तक आपकी कीर्ति स्थिर रखने के हेतु मैंने छल किया था, सो क्षमा कीजिए और अपना राज्य लीजिए।

( हरिश्चन्द्र भगवान् और धर्म का मुँह देखते हैं )

धर्म---महाराज! राज्य आपका है, इसका में साक्षी हूँ, आप निस्संदेह लीजिए।

सत्य---ठीक है, जिसने हमारा अस्तित्व संसार में प्रत्यक्ष कर दिखाया उसी का पृथ्वी का राज्य है।

श्रीमहादेव---पुत्र हरिश्चंद्र! भगवान् नारायण के अनुग्रह से ब्रह्मलोक-पर्येत तुमने पाया, तथापि मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारी कीर्ति जब तक पृथ्वी है तब तक स्थिर रहे और रोहिताश्व दीर्घायु, प्रतापी और चक्रवर्ती हो।


  • श्रीमहादेव, पार्वती और भैरव का ध्यान सबको 'विदित है। इंद्र

और विश्वामित्र का लिख चुके हैं। धर्म चतुर्भुज, श्याम रंग, पीतांबर, दंड, पत्र और कमल हाथ में। सत्य शुक्ल वर्ण, श्वेत वस्त्राभरण, नारायण के चारों शस्त्र हाथ में।