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भारतेंदु-नाटकावली

कभी उनके, मुझको अक्सर करके जब मैं जाता हूँ तब वह नहाकर आते रहते हैं।

छक्कूजी---मसाल काहे ले जाथै मेहरारुन का मुँह देखै के?

बलमु०---( हॅस कर ) यह मैं नहीं कह सकता।

छक्कूजी---कहो मलजी, आज फूलघर में नाहीं गयो हिंअई बैठ गयो?

मलजी---अाज देर हो गई, दर्शन करके जाऊँगा।

छक्कूजी---तोरे हियाँ ठाकुरजी जागे होहिंहै कि नाहीं?

मलजी---जागे तो न होगे पर अब तैयारी होगी। मेरे हियाँ तो स्त्रियें जगाकर मंगल भोग धर देती हैं। फिर जब मैं दर्शन करके जाता हूँ तो भोग धराकर आरती करता हूँ।

कक्कूजी---कहो तोसे रामचंद से बोलाचाली है कि नाहीं?

मलजी---बोलचाल तो है, पर अब वह बात नहीं है। आगे तो दर्शन करने का सब उत्सवों पर बुलावा आता था अब नहीं आता, तिस्में बड़े साहब तो ठीक-ठीक, छोटे चित्त के बड़े खोटे हैं।

( नेपथ्य में )

गरम जल की गागर लाओ।

झप०---( गली की ओर देखकर जोर से ) अरे कौन जलघरिया है? एतनी देर भई अभहीं तोरे गागर लिआवै की बखत नाहीं भई?